दाता अब तो मुक्त करो
निज धर्म से मुझको युक्त करो
दीर्घ लघु मेरी भूलों से
हृदय-विदारक शूलों से
मोह गहन भव-बन्धन से
मृगतृषित भवसुख सुमिरन से
छल छद्म नयन के अञ्जन से
मिथ्या भँवर रव-गुञ्जन से
विचलित मन के सागर से
द्रवित ,कुण्ठित , मलित
विह्वलित चित्त के गागर से
दाता अब तो मुक्त करो
निज धर्म से मुझको युक्त करो
दाता अब तो मुक्त करो……
“भक्ति”