कमबख्त जिंदगी की खत्म हुई ना तलाश,
ख्वाहिशों की शमा बुझ गई यूं ही बेआस।
थका ना कभी इंसान पैसे की भूख से,
पैसों की बढ़ती गई हर कदम पर आस।
दम घोटू से रिश्ते खुदगर्जी के महल,
मर तो चुके थे बस चल रही है सांस।
अच्छी यादें बनती गई बुरे बुरे से ख्वाब,
उम्मीदों के समंदर में नहीं कोई आसपास।
गले लग कर जो हुए थे विदा अश्कों के संग,’ सीमा’,
खंजर घोप गए जाते हुए अपने थे जो खास।
स्वरचित सीमा कौशल यमुनानगर हरियाणा