कहीं फेंका गया तेज़ाब, कहीं लूटा गया हिजाब,
अफ़सोस जताने को मोमबत्तियां जल रही हैं,
कहीं दहेज़ की आग में जल गयी सुहागिन,
कहीं कचरे के ढेर में नवजात मिल रही है,
पढ़े-लिखे भी धरने करते, सड़कों और चौराहों पर मरते,
किसी से कर्ज़ा मांग-मांग कर परीक्षाओं के शुल्क हैं भरते,
चिंता और बेरोजगारी साथ-साथ ही बढ़ रही है,
नौकरी तो मिलती नहीं बस दिलासा ही मिल रही है,
फसल हुयी तबाह , मानसून है राह भटक ,
कर्ज के नीचे दबा हुआ, कृषक फांसी पर लटक रहा,
खाना न खाता वो, डर बेटी के दहेज़ का 
धूप में तपता वो , मुस्कानें कहीं और खिल रही हैं,
रुपया गिरा मजबूत है डॉलर
पकड़े  रईस मजदूर का कालर,
न जाने इस देश में कैसी हवाएँ चल रही हैं,
सम्मान गिर रहा  नेताओं का और महंगाई बढ़ रही है,
रंजना झा
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