दिल के बजाय जिस्म से इश्क करने लगे हैं लोग 
जिस्म के गहरे समंदर में इश्क ढूंढने लगे हैं लोग 
किसी जमाने में इश्क इबादत हुआ करता था “हरि”
अब इश्क को कमीना, कमबख्त कहने लगे हैं लोग 
इश्क का जुनून कुछ इस तरह से चढने लगा है 
दिल तेरी मुहब्बत में हद से आगे बढने लगा है 
दीवानगी का आलम कुछ ऐसा छाया है मुझ पर
कि दिल तेरे इश्क का अब कलमा पढने लगा है 
इश्क आवारा सा घूमता है भटकते चांद की तरह 
दिल दीवाना सा धड़कता है “यमन” राग की तरह 
नजरें तेरी चौखट पे जाकर लौट आती हैं खाली सी 
फैल रही है चाहत फिजां में फूल ए गुलाब की तरह 
हरिशंकर गोयल “हरि” 
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