मानव जीवन की दुनिया में,
शतरंज के जैसी कहानी है।
कहीं पे प्यादा कहीं पे राजा,
और कहीं पर रानी है।
हार-जीत का खेल निराला,
रिश्तों की बलि चढ़ जाती है।
सूझ-बूझ से काम अगर लें,
तो मंजिल। मिल जाती है।
कोई नही किसी से छोटा,
सबका अस्तित्व यहां पर है।
कमियों को गर छोड़ दे पीछे,
तो सिर्फ अच्छाई यहां पर है।
छोटा सा प्यादा शतरंज का,
जीवन का फलसफा बताता है।
पाता है वही ऊंचाई को,
जो हौसलों के पंख लगाता है।
शीला द्विवेदी “अक्षरा”
उत्तर प्रदेश “उरई”