ओस की चादर ओढ़े जैसे..
टिमटिमाते तारों के साथ
पवन के वेग से करता संधि हो जैसे..
अवनि की तल को करता द्रवित
ठिठुरते हाथ, शिथिल होते पांव
होती अनुपम जिज्ञासा
क्या यही है कोहरे की परिभाषा?
मुंगफली खाने की होड़
गन्ना खाते बेजोड़ ..
हाड़ कंपाती ठंड में
थिरक रहे हैं मोर ..
सरसों के ये फूल
बथुआ का है साग ..
किटकिट करते दांत हैं
श्वान सुनाए राग ..
जलते बडे़ अलाव हैं
तिल कूट का है भोग..
आंवला जैम खाते रहो
रहना सबल निरोग ..
नहीं सताए कोहरा
मधुर सुहानी ठंड
बालक का उत्सव मने
विहग उडे़ स्वछंद!