ना जाने कितने गुनाहों का गवाह है ये
कभी छुपा लेती है वो लुटती अस्मत
ये घनघोर कुहासे भरी मनहूस रात
कभी दुर्घटनाओं को न्योता भेज देती है
कुहासे से लिपटी सफेद ठंडी चादर ओढ़े
खूनी सड़को पर अपने संदेश भेजकर
ना जाने कितने बेजुबान रौंद दिए जाते हैं
कुहासे में छिपे तेज वाहनों के पहियों से
कहीं कहीं सोए हुए मिलते हैं गर्म भट्ठियों में
थके हुए ठिठुरते हुए मासूम बेसहारा बच्चे
दिन भर काम करने के बाद ढूंढते हैं जो
कोई ठिकाना खुद को सर्द रात से बचाने का
ये कुहासे भरी ठंडी रात छिपाए हुए है
अनेकों रहस्य इस भागती हुई जिन्दगी के
ये कुहासे भरी ठंडी रात……
संगीता शर्मा “प्रिया”