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कोहरे की रात मे डर से कांपती हुए
वो एक अजनबी सी लड़की
मुझे एक मोड़ मिली
आँखों मे डर की आँसू छलके
होठों से कुछ भी बोल न पारही थीं
चारो तरफ धुंध फैला था गहरी
जाने कहाँ से चली थीं वो तन्हा एकेली
ठंडी ठंडी हवाओ से
वो खुद मे ही सिमटी जारही थीं
कहना कुछ हमने चाहा
पर वो कुछ बोलने की हालत मे न थीं
काली घनघोर कोहरे मे
वो अनजान सी राहो मे
जाने किस सितम गर से सताई हुई थीं
चहरे से मासूम सी इतनी
जैसे खूबसूरती की मूरत हो
पर मेरे ज़िन्दगी के लिए भी
वो किसी मसीहा से कुछ कम नहीं थीं
देख उसके हालत को
मुझे यूँ तन्हा छोड़ा न गया
खुद मे ही सुबकते हुए इस तरह
मुझसे ज्यादा देर देखा न गया
बैठी थीं किसी पेड़ से लग कर
जैसे किसी के साये से पीछा छुड़ा कर भाग रही हो
पूछ बैठे हम भी उस अजनबी से
कहाँ जाना है और कहाँ से आयी हो
देखो डरो मत मैं कोई दुश्मन नहीं हूँ तुम्हारा
हाँ माना की अजनबी हूँ
पर हमदर्द बनना चाहता हूँ तुम्हारा
सुनकर मेरी बात वो लड़की
मुझसे आकर यूँ लिपट गयीं
जैसे किसी छोटी बच्ची सी मुझमे वो सिमट गयीं
महसूस कर उसका दर्द दील का
मेरे आँखों के किनारे भी बह गया
भर लिया मैं भी बाहो मे उसको
जिससे दोनों दिलो को एक सुकून भरे सहारा मिला
बंद होगए पलकें खुद पे खुद हमारे
यूँही एक दूसरे से लिपटे हुए
पता भी न चला कैसे गुज़रा उस कोहरे की रात
ज़ब हमारे आँख खुली तो सामने
सुबह का एक नयी ज़िन्दगी का अहसास हुआ
ज़िन्दगी बदल के रख दी हमारे
उस कोहरे की रात ने
जो कभी तड़पते थे अपनेपन के लिए
………..स्वरचित🌹🌹🌹🌹🌹प्रितम वर्मा🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹