छोटे से गाँव की वासी थी, 
सोच में मगर बड़ी ऊंचाई थी।
छोटी सी दुनिया बसानी थी संग जिसके
उसी पति द्वारा वो ठुकराई थी! 
देखी थी भूख- गरीबी, और बेबसी 
झोली खाली थी लकिन, 
मन में ममता समाई थी।
कभी थी बेघर खुद, 
दर्द दूसरों का देख, आंख मगर भर्राई थी
यूँ तो साधारण ही सी थी वो, 
मगर अद्भुत नसीब वो लाई थी,
एक बच्चे को दूध न सकी जो,
फिर हर बच्चे की माँ कहलाई थी।
ज्यों थी देवी अनुसूया धरा पर, 
आशा की ज्योति पुंज थी, 
ममता का सागर सी थी वो,
सिंधू सी विशाल थी, 
कहते हैं अम्मा सारे जिनको
वो दिव्य ज्योति सिंधू ताई थी।
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