कहते है पैसे मे बडी ताकत होती है ।कहावत है पैसा तेरे तीन नाम परसु ,परसा,परसराम ।मेरी माँ अकसर ये कहावत दोहराती थी।और मैं हमेशा माँ को यह कहानी सुनाने के लिए कहती थी।एक दिन माँ अपना यादों का पिटारा खोल के बैठी तो इस कहानी का ज्ञान प्राप्त हुआ ।माँ ने बताया, बहुत समय पहले की बात है एक गाँव में एक किसान रहता था।उस के पास जमीन नही थी।वह दूसरों के खेतों में काम करता था और अपना जीवन यापन करता था। बेचारा बड़ी मुश्किल से घर का गुजारा करता था ।उसका नाम परसराम था। लोग बाग अपने खेतों का काम करवाने के लिए अकसर उसे बुलाने आते थे।घर के बाहर खड़े होकर आवाज़ लगाते थे।,”परसु घर पर है क्या तू ?आज खेतों पर आ जाना काम करना है।”बेचारा परसराम बाहर आकर हाथ जोड़कर खडा हो जाता और सिर हिला कर हां भर देता।दिन यूँ ही कट रहे थे।एक दिन परसराम घर के लिए लकड़ी लेने जंगल में गया।वहाँ पर वह थकान उतारने के लिए एक पेड़ के नीचे बैठा ।जब वह पेड़ के पास पहुँचा तो एक बहुत अच्छी सुगन्ध से उसका मन बड़ा प्रफुल्लित हो गया । वह उस पेड़ की कुछ लकड़ी तोड़ लाया।घर आकर उस ने लकड़ी को अपनी पत्नी को दिखाया।परसराम की पत्नी समझदार थी।वह बोली ऐसी लकड़ी तो मैंने मंदिर में देखी है।आप पुजारी काका को क्यू नही दिखा आते।परसराम ने जब लकड़ी पुजारी को दिखाई तो पुजारी ने कहा, “ये लकड़ी तुम जितनी चाहो ले आना।मै खरीद लूँगा ।परसराम लकड़ी काटकर लाता और पुजारी काका को बेच आता।अब उसके दिन अच्छे से बीतने लगे।घर मे दाल रोटी का गुजारा अच्छे से होने लगा ।अब वह कही गली पड़ोस से जा रहा होता तो लोग कहते,”हाँ भाई परसा ठीक है ।कल हमारे यहाँ दावत है आ जाना।भाभी को साथ जरूर लाना।” परसराम सोचता कल तक तो मै परसु था आज मैं परसा हो गया।कमाल है ।एक दिन जब परसराम पुजारी को लकड़ी देने गया तो शहर का कोई व्यापारी वहाँ बैठा था ।उसने देखा पुजारी इस आदमी से लकड़ी लेकर मुझे महंगी बेचता है।सेठ ने परसराम का पीछा किया और उसके घर पहुँच गया और परसराम से सीथा मोल भाव करने लगा।अब तो परसराम की पांचों उंगलियां घी में और सिर कढाई में था।अब वह धीरे-धीरे अमीर होने लगा।एक दिन उसके समाज के लोग उसकी हवेली पर आये और बोले,”जी परसराम जी घर पर है।आज नये स्कूल का उदघाटन आपके हाथों होना है जी।परसराम खिलखिला कर हंसा ।उसकी पत्नी ने आज हलवा बनाया था।वह हलवे को कटोरे मे लेकर बाहर आया और कभी हलवा सोफे पर लगाता कभी हवेली की दीवारों पर। लोग बोले ,”क्या हुआ परसराम जी आप ऐसा क्यू कर रहेहै।”परसराम हँसता हुआ बोला, “भाई इन सोफो का ,इस हवेली का मुँह मीठा करवा रहा हूँ आज इनके कारण मुझे इतनी इज्जत मिल रही है।सही कहा है भाई “पैसा तेरे तीन नाम परसु, परसा परसराम ।हहहहा
रचनाकार:- मोनिका गर्ग