यदि मैं होती एक घड़ी,
चलती अपनी मर्जी से
कुछ बीते सुंदर पल में
लौट आती फिर से
दुख भरे जो पल आता
गति बढ़ाती झट से
सुख भरे जो पल आता
वक्त लगाती गुजरने से…..।
जो करना होता लक्ष्य को पूरा,
साथ चलना सिखलाती
करना पड़ता इंतजार किसी का
दौड़ मैं लगाती वर्षों से जो है
शिकायत लोगों की उसे दूर कर देती
चलती अपनी मर्जी से यदि मैं घड़ी होती।
(स्वरचित मौलिक)@ऋचा कर्ण