एक दरख़्त की छांव तले, बैठा है एक फकीरा।
देख नजाकत अपने चमन की, गाये उसका इकतारा।।
मुरझाए नहीं कोई फूल यहाँ, टूटे नहीं भाईचारा।
एक डाल के हम हैं पंछी , एक है नीड़ हमारा।। एक है नीड़ हमारा,गाये उसका इकतारा ।।
एक दरख़्त की छांव —————–।।
रावण की जरूरत नहीं यहाँ, कंस कभी तुम मत बनना।
दुश्मन से तलवार की जंग में, लहू नाहक तुम मत करना।।
लहराना तुम विजय तिरंगा, मकसद हो यह तुम्हारा।
मकसद हो यह तुम्हारा, गाये उसका इकतारा।।
एक दरख़्त की छांव —————–।।
मुफ़लिस या यतीम का खूं हो, इनसे हिकारत मत करना।
हक़ीमताई बनकर तुम ,इनपे सितम कभी मत करना।।
यहाँ मुकम्मल हो सबके, ऐसा हो ईमान तुम्हारा।
ऐसा हो ईमान तुम्हारा, गाये उसका इकतारा।।
एक दरख्त की छांव————–।।
समझो भाषा हर मजहब की, एक इबारत है फूलों।
मोहब्बत है पैगाम खुदा का, तालीम यह मत भूलों।।
जख्म किसी के जज्बातों पे, करें नहीं शब्द तुम्हारा।
करें नहीं शब्द तुम्हारा, गाये उसका इकतारा।।
एक दरख़्त की छांव————–।।
रचनाकार एवं लेखक-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
ग्राम- ठूँसरा, पोस्ट- गजनपुरा
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)