आज शब्द मेरे,पहचान बन गए
जीवन में मेरे ,अरमान बन गए ,
शब्दों से अपने थी,मैं अपरिचित
आज शब्द ही,मेरे विचार बन गए ।।
जिस भाव से मैं,पंक्तियों को सजाऊं
दिल में छोटा सा,दीपक को जलाऊं,
दिल की बातों को, मैं समझ जाऊं
कविताओं में उनको ,मैं पिरो पाऊं ।।
एक-एक मोती पिरो, माला बनती
चुनकर शब्दों को,कविता मैं लिखती,
विचारों,मनोभावों को,पन्नों पर उकेरती
खुश हूं खुद से,अपने अरमानों में जीती ।।
सोच सकारात्मक ,जीवन में रखती
छोटी-छोटी खुशियों को मैं सहेजती,
अपनों के लिए ,मैं भावुक भी रहती
जिंदगी के किताब को,भावनाओं में गढ़ती ।।
न हूं मैं कोई कवियित्री,न हूं मैं लेखिका
पर खुश होती हूं,अपने भावों को व्यक्त कर
गर…..जीवित भी न रहूं,इस जहान में
रहेंगे सदा “मेरे शब्द” किसी कोने में………😊
…..रहेंगे सदा “मेरे शब्द” किसी कोने में…….
✍️ मनीषा भुआर्य ठाकुर(कर्नाटक)