लेखक प्रतिक्षण यही स्वपन गढ़े
भावों को कुछ ऐसे रंग में रंगे
कलम कागज़ के साथ कमाल करे।
शब्दों का ऐसा स्वप्निल संसार रचे
कल्पना से उनमें गहरी संवेदनाएं भरे
अद्भुत कृतिकार ऐसा बने
सत्य को आत्मसात करता रहे,
रचना में उसकी मानव की पीड़ा बहे
विवशता प्राणीमात्र की अनुभूति का
आधार बने
समाज का दर्पण बनकर संदेश
समाज को देता रहे
जनकल्याण को लेकर वो
सदैव ही जागरूक रहे
पाठक के हृदय से जुड़कर
उसके ही मन की बात कहे
अहसासों से रोशन पन्ने सबको
दिल के अपने जज़्बात लगे
कोमल सपनों के स्पर्श की
भाषा हृदय को छूकर निकले
अधूरी इच्छाओं की कहानियाँ
नवजीवन का निर्माण करे
सुखों की निर्मल धारा के साथ
दुख के पहाड़ भी स्वीकार करे
देशभक्ति का ओज एवं उत्साह
जन जन में भरता चले
श्रृंगार, वीर, हास्य, रसों की
खान का भंडार रहे
प्रेयसी एवं प्रकृति के
सौंदर्य का गुणगान करे।
सच फिर भी यही अपनी
रचनाओं में वो भी जीवन के
अनुभवों का सार लिखे
सपने अपने जो न बन पाये
उन्हें लफ़्ज़ों का आधार मिले 
अभिव्यक्ति से अपनी उसको
बस एक नई पहचान मिले 
श्रेष्ठ भले न कहलाये पर दिल
में पाठक के एक विशेष स्थान मिले……
स्वरचित
शैली भागवत ‘आस’✍️
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