धैर्य,संयम रूपि हथियार से महामारी को हराएंगे।
हर  घर  के  आंगन  में  आशा  के  दीप जलाएंगे।।
दो गज दूरी, मास्क जरूरी सारे नियम को जानेंगे 
फिर  भी गैरों  को  विपदा  में  हम अपना  मानेंगे
स्वयं की रक्षा करते हुए ,सबको  मदद पहुंचाएंगे।
हर घर  के  आंगन  में ,आशा  के  दीप जलाएंगे।।
हो रोटी घर जिसके ज्यादा, दूजे की मदद कर दे
विपदा में मिले मदद  सभी को, ऐसा  अवसर  दे
मानव  हैं  हम मानवता  का हर  फर्ज  निभाएंगे।
हर घर  के  आंगन  में ,आशा  के  दीप  जलाएंगे।।
काली रात लंबी हो कितनी, सूरज को निकलना है
अंधियारे पथ पर हम सबको ,जुगनू बन चलना  है
मिलकर तूफान से कश्ती को, साहिल पर लाएंगे ।
हर  घर  के आंगन  में ,आशा  के  दीप  जलाएंगे।।
स्वरचित :
पिंकी मिश्रा
भागलपुर बिहार ।
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