कॉलेज के दिनों में एक लड़की से आंखें लड़ गईं
लड़की तो खुश थी मगर उसकी मम्मी बिगड़ गई
लड़की पर उसकी मम्मी पूरी निगाहें रखती थी 
हमें निकम्मा, नालायक आवारा ही समझती थी 
चोरी चोरी चुपके चुपके हम दोनों मिला करते थे
चुपके चुपके बुक में ही प्रेमपत्र रख दिया करते थे
एक दिन हमारा प्रेमपत्र उसकी मम्मी ने पढ लिया
जितने भी बुखार होते हैं सब हम पर चढ़ लिया 
भगवान जाने अब कौन सी आफत आने वाली थी
ख्वाबों में सुन डालीं हमने होती जितनी गाली थीं 
गुस्से से उफनती उसकी मम्मी हमारे घर पे आ गईं
उन्हें देखकर अपनी जान पत्ते जैसी कंपकंपा गई
हे भगवान,  लाज रख लेना, अब जो होने वाला था
घरवालों के बीच हमारा फालूदा निकलने वाला था
पर होनी को शायद कुछ और ही मंजूर होता है 
होता वही है जो कुछ भी सब ऊपरवाला करता है
कहने लगीं “तुम तो बड़ा अच्छा प्रेमपत्र लिखते हो
शक्ल से थोड़े पैदल हो पर अक्ल तो थोड़ी रखते हो
पिंकी से शादी कर दूंगी पर वादा एक करना होगा 
पिंकी के पापा को ऐसा लैटर लिखना सिखाना होगा” 
उनकी बातें सुनके हमरी जान में जान आ गई
पिंकी के संग संग उसकी मम्मी भी हमें भा गई । 
हरिशंकर गोयल “हरि”
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