आज समाज के ठेकेदारों के मुंह पे लगा ताला है !
झूठे का बोलबाला है ,सच्चे का मुंह काला है !!
शरीफ तहजीब और इंसानियत का, कोई मतलब अब नही रहा !
दादागिरी गुंडागर्दी को, मान यहां नित मिल रहा !!
समझ न आता ऐसे लोगो को, हम कुर्सी क्यों देते है
न्याय का दामन छोड़ , अन्याय का साथ जो देते हैं
या तो उनकी मजबूरी है, या तो वो घबराते हैं!
अपने से दमदार लोगों से, पंगा लेने से डरते हैं!!
रौब दिखाते हैं वो अक्सर कमजोर तबके के लोगो पर !
अपने पैसे का गुमान है करते, तेवर दिखाते हैं उन पर!!
लेकिन जब कोई तगड़ा मिल जाता है सिट्टी पिटी गुम हो जाती !
बोलती बंद होती और हवा भी टाइट हो जाती!!
समझ लो जनाब !यहां पर ,हर दिन एक समान नही होता !
कभी नाव चलती गाड़ी पर कभी नाव पर गाड़ी चलता!!
सुन समाज के ठेकेदारों! तेरा एक दिन ऐसा आएगा !
जिसके लिए बेचा ईमान, एक दिन वही तुझे खा जायेगा!!