भारत आजाद हो चुका था। सारी रियासतें देश का हिस्सा बन चुकी थी।
राजाओं के रहन-सहन, काम करने के तरीके में थोड़ा बदलाव तो आया, किंतु जनता आज भी उनको उतना ही प्रेम करती थी। जो जिस रियासत का राजा था वहां की जनता सरकार के बजाय उसे का हुकुम मानती थी।
मुन्नी बाई सालों से अपना कोठा इसी रियासत में चलाती आ रही थी। बड़े बड़े सेठ, हुक्मरान उसके कोठे की शान होते थे।
परंतु कुछ 2 साल से उसके कोठे की एक लड़की गोरी की चर्चा पूरे शहर में फैली थी।
मुन्नीबाई गोरी को ऊपर वाले कमरे में रखती थी। कोई उससे मिलने नहीं जा सकता था।
आए दिन ग्राहक उसके लिए आते, पैसे भी बढ़ाते ऐसा नहीं है कि मुन्नीबाई उसका सौदा नहीं करना चाहती थी, किंतु वह मजबूर थी।
वह तो दिन रात सपने देखा करती कि कब गोरी का सौदा हो? कब उसको माल मिले?
पर गोरी किसी की अमानत थीः डाकू हजीरा की
हुआ यह कि रात को 2 साल पहले हजीरा मुन्नीबाई को गौरी को सौंपते हुए कहा कि -‘मेरी अमानत है, संभाल कर रखना लेने आऊंगा। अब हजीरा से मुन्नीबाई बड़ी डरती थी। एक तो डाकू ऊपर से वह काफी रुपया पैसा और गहने देकर गया था । गौरी की देखभाल के लिए। जाते-जाते बता गया था- ‘देखो मुन्नीबाई यह मेरी प्रेमिका है,इसे कोई कष्ट ना होने पाए वरना तुम्हारी खैर नहीं’।
गौरी बहुत सुंदर, सुशील कन्या थी। वह सदा भगवान के भजन में मगन रहती ।कीचड़ में कमल के समान थी।
पहले पहल सारी लड़कियां उसे बड़ी परेशान करती थी जान पूछकर उसे मांसाहारी भोजन परोसती थी, पर वह भूखा रहना पसंद करती, मांस को हाथ न लगाती, धीरे-धीरे उसके व्यवहार ने वहां की सभी लड़कियों का दिल जीत लिया ।
उसे गाना बहुत अच्छा आता था। इसलिए कुछ लड़कियां उसे गाना भी सीखा करती थी। मुन्नीबाई इसी में खुश रहती थी कि चलो कुछ तो यह मेरे कोठे वाली लड़कियों के लिए कर रही है।
ऊपर छत पर टहलते देखते हैं ,कभी उसकी आवाज सुनते
तो बड़े बड़े सेठ ग्राहक उसका दाम लगाते।
मुन्नी बाई हर एक को यह कहकर दिलासा देती कि बस कुछ दिन रुक जाइए फिर देखिए आप ही की होगी।
मुन्नी बाई को तो सबसे बनाकर रखनी है ।किसी को यह भी नहीं कह सकती। कि डाकू की प्रेमिका है।
एक दिन अचानक मुन्नीबाई बहुत खुश थी। उसकी खुशी का कारण था डाकू हजीरा पुलिस के हाथों पकड़ा गया और उसे जेल में भेज दिया गया।
यह बात मुन्नीबाई अच्छे से जानती थी कि एक बार जो जेल में फंसा तो अभी भी वही अंग्रेज सरकार वाले कानून है या तो वह निकलेगा नहीं और या फिर उसको अंदर ऐसा गंदा खाना और खराब व्यवहार करेंगे कि वह बीमारियों से ही मर जाएगा।
मुन्नी बाई ने सेठ लालचंद को सबसे पहले गोरी के पास भेजा कि उसने ही सबसे ज्यादा कीमत चुकाई थी, किंतु लालचंद ने उसके कोठे पर ही आना बंद कर दिया। समझ नहीं पाई।
मेरा इतना अमीर ग्राहक तेरी वजह से गायब हो गया है। वह तो आता ही नहीं, मुन्नीबाई गौरी को धमकाते हुए कहने लगी।
कुछ ग्राहकों के साथ ऐसा हुआ तो अब गौरी मुन्नी बाई के लिए मनहूस हो गई।
सारा दिन जली कटी सुनाती, खाना भी नहीं भिजवा ती ,उसने जीना मुश्किल कर दिया।
गोरी तो उतनी ही शांति की मूर्ति बनी रहती। उसका अपना वही काम रहता सुबह सवेरे जगना, अपना सारा काम खुद करना, भोजन आए तो भगवान को भोग लगाकर भोजन करना, ना आए तो पानी पी कर सारा दिन भजन करना।
अब मुन्नी ने संगीत सीखने के लिए लड़कियों को भेजना बंद कर दिया। क्योंकि वह भजन ज्यादा सिखाती थी।
जो रुपया पैसा तेरे लिए हजीरा देकर गया था। वह सब खत्म हो गया। तू मुझे कुछ कमा कर नहीं देती।
निकल जा मेरे यहां से मुन्नीबाई गोरी को कहती है।
गौरी मुन्नीबाई को अम्मा कहती थी। बाकी लड़कियों की तरह कहने लगी अम्मा मैं तो तुम्हारी अमानत हूं, मैं कहां जाऊंगी? गोरी ने अपनी बात साधारण तरीके से कि पर उनका आत्मविश्वास और तेज इतना था कि मुन्नीबाई ज्यादा देर उसके सामने टिक न पाई, उससे झगड़ा भी नहीं कर सकी।
मगर शहर में गौरी के नाम के अलग ही चर्चे थे। लोग उसकी तारीफ करते थे। सुनने में आया कि जो जो सेठ उसके पास गए, वह भक्त हो गए।
जाने क्या पट्टी पढ़ाती है? क्या सिखाती है?
महिलाएं तो यह कहती पाई गई कि मुन्नी बाई अगर हमारे पति यहां कोठे पर आएं तो गौरी के पास ही भिजवा देना, क्या पता कोठे पर उनका भी आखरी दिन हो और सुधर जाएं।
मुन्नी बाई की शिकायत राजा के दरबार में पहुंची, कि मैं गौरी को निकालना चाहती हूंँ, कमबख्त निकलना नहीं चाहती।
मुन्नीभाई और गौरी को सभा में बुलाया गया।
सारा शहर उठ कर आया था कि राजा क्या फैसला करते हैं।
मुन्नी बाई ने कहा कि या तो इसे राज महल में अपनी दासी के रूप में स्वीकार करेंगे या कहीं किसी दूसरे शहर या कोठे पर भिजवा दें मैं इसे नहीं रखूंगी।
राजा ने गौरी की तरफ देखा और कहा तुम्हें क्या कहना है?
कौन हो? कहां से आई हो?
गोरी ने बहुत सहनशीलता से उतर दिया ,महाराज यह तो आप पर निर्भर करता है, आप मुझे कहां भेजेंगे; क्योंकि मैं आपकी प्रजा हूंँ और प्रजा पर राजा का अधिकार होता है।
राजा के मन में कौतूहल था; उन्होंने कहा -‘तुम इतनी सुशील हो, अच्छी हो फिर कोठे पर तुम्हारा क्या काम? तुम हमें बताओ; हम तुम्हारी सहायता करेंगे’।
गोरी ने कहा हे राजन! मैं भी एक राजकुमारी हूंँ, किंतु अब जिस दशा में हूंँ ;अगर मैं अपने कुल का नाम लूंगी तो यह उनके लिए कलंक होगा।
मेरे पिता ने मेरे विवाह के पश्चात मुझे मेरे पति को सौंप दिया था।
किंतु रास्ते में कुछ डाकूओं ने हम पर आक्रमण किया। जिसमें मेरे पति मारे गए और वह डाकू मुझे उठा लाया। कई महीनों तक उसने मुझे अपने साथ ही रखा, फिर एक जगह वह डाका डालने जा रहा था; तो उसने मुझे कहा- ‘मैं कुछ दिन तुम्हें अपने एक जानकार के यहां छोड़ देता हूंँ फिर आकर लेकर जाऊंगा।’
डाकू हजीरा ने मुझे कोई कष्ट नहीं दिया। मैं जैसे रहना चाहती थी; मुझे रहने देता था।
मैं अपने भगवान से बहुत प्रेम करती हूंँ और उसके निर्णय पर कभी कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगाती। जब वह मुझे राजकुमारी के रूप में जन्म देता है। तो मैं पिता और भाई की शरण में रहकर अपना जीवन बिता रही थी। फिर पति को सौंपा तो मैं उनकी पत्नी थी, वहां से उस डाकू ने मुझे उठाया तो मैंने अपने जीवन का सारा अधिकार उस डाकू को दिया। वहां से मैं अम्मा के पास आई तो यहां मैं अपना कर्तव्य निभा रही थी। अब मैं आपकी शरण में हूंँ राजन! आप अपने राज्य में रखें या फिर देश निकाला दे दे।
जो मेरे प्रभु ने
मेरे भाग्य में लिख दिया है। वह तो होकर रहेगा। चाहे मैं रो-रो कर वह सब सह लू या फिर हंस-हंसकर ।
निर्णय आपका है।
राजा ने घड़ी भर के लिए कुछ सोचा और फिर कहा गौरी तुम स्वतंत्र हो। तुम्हारा जहां मन करे तुम जा सकती हो।
गौरी ने कहा- ‘मैं तो अपने प्रभु के स्थानों पर जाना चाहूंगी, तीरथ- तीरथ पैदल चलकर जाऊंगी और इसी में अपना जीवन बिता दूंगी।’
वंदना शर्मा (स्वरचित)