खुद में हर व्यक्ति संपूर्ण और सौंदर्य से भरा हुआ होता है। असल में सौंदर्य देखने वाले की दृष्टि में होता है, हम किसी व्यक्ति को किस नजरिए से देखते हैं यह हम पर निर्भर करता है, हर व्यक्ति में अच्छाई और बुराई दोनों ही होती है पर वह अपने अवगुणों को अपने सौंदर्य से ढक लेता है,ऐसा भी कहा जा सकता है और गुणों के बल से कुरूपता/असुन्दरता पर विजयी हो बुद्धि का लोहा मनवा लेता है जैसा कि हमारा पौराणिक इतिहास अष्टावक्र बनाम वंदनि का शास्त्रार्थ साक्ष्य देता है।
तन कितना भी सुन्दर है पर मन सुन्दर नहीं तो व्यर्थ है।बुद्धि कितनी भी तीक्ष्ण है पर यदि दिशा सही नहीं तो व्यर्थ है ऐसे ही विचार कितने भी उच्च कोटि के हों पर यदि जीवन में अवतरित नहीं तो व्यर्थ हैं अतः प्रत्येक की समुचित सक्रियता और सार्थकता परमावश्यक है।
यद्यपि बुद्धि और सौंदर्य अपना अपना महत्त्व रखते हैं परन्तु दोंनो में सामंजस्य तो अद्वितीय परिणाम देता है यदि उसमें विवेक भी समन्वित हो जाए।
धन्यवाद!
राम राम जय श्रीराम!
लेखिका –
सुषमा श्रीवास्तव
मौलिक विचार