शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में जिस महापुरुष ने सभा को “मेरे अमरीकी भाइयों और बहनों ” शब्दों से संबोधित किया तो वातावरण तालियों की गड़गड़ाहट से गुंजायमान हो उठा।उनकी ओजपूर्ण वाणी से सभी देशों से आये धर्म प्रतिनिधि प्रभावित हुए बिना न रह सके। इस भाषण से भारत को एक नई पहचान मिली।
आपलोग अबतक समझ चुके होंगे कि मैं किसकी चर्चा करने जा रही हूँ।
जी हाँ! इस महान महापुरुष का नाम स्वामी विवेकानंद था।  जिन भारतीयों  को विदेशों में हेय दृष्टि से देखा जाता था। जिनके तहज़ीब और तमीज़ की निंदा की जाती थी। स्वामी विवेकानंद के विचारों को सुनने के बाद लोगों की धारणा बदल चुकी थी।
आज के दिन ये महापुरुष भारत मे अवतरित हुए थे।  इनका जन्म 12 जनवरी सन 1863 कोलकाता में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। इनके पिता विश्वनाथ दत्त एक वकील थे। माता पिता ने इनका नाम नरेंद्र नाथ रखा। इनके आध्यात्मिक गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस जी ने इन्हें विवेकानंद नाम दिया था। ये अति कुशाग्र बुद्धि के एवम चपल थे।माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं जिनका पूर्णतया प्रभाव बालक नरेंद्र पर पड़ा। घर में सदा ही धार्मिक वातावरण रहता था धार्मिक पंडितों ,विद्वानों का आना जाना लगा रहता था। उनके व्याख्यानों को सुनकर इनके मन मे भी ईश्वर को जानने की ललक पैदा हुई।
बुद्धि तो कुशाग्र थी ही कम समय में ही सभी शास्त्रों और वेदों का अध्ययन कर लिया। इन्होंने  रामकृष्ण परमहंस के विचारों से प्रभावित होकर उन्हें अपना गुरु बनाया। स्वामी विवेकानंद के सानिध्य से उन्हें इस बात का ज्ञान हुआ कि केवल तर्कों के आधार पर सत्य तक नहीं पंहुचा जा सकता है उसके लिए अपने विवेक का प्रयोग भी ज़रूरी है।
देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था इन्होंने प्रभाव शाली और सार्थक जन आह्वान किया जिससे आम जनता भी अपने घरों से बाहर निकली।
उन्होंने पैदल भारत के गाँवों में घूम घूम कर गरीबो दुखियों का हाल जाना और उनकी सेवा और सहायता किया। धार्मिक आडंबरों और पाखंड के ये घोर विरोधी थे। ये विवेकानंद ही कह सकते थे-” सभी मंदिरों में भूखे ,दरिद्र और असहायों को प्रतिष्ठित करके इनकी सेवा करो।” पुरोहित वाद का इन्होंने घोर विरोध किया था।
उनकी कुछ महवपूर्ण कृतियाँ- कर्म योग, राजयोग, वर्तमान  भारत, ज्ञान योग, My master इत्यादि है।
इन्होंने विदेशों में जाकर हिंदुत्व का प्रचार किया। इनके ओजपूर्ण और सारगर्भित व्याख्यान पूरे विश्व में प्रसिद्ध एवम चर्चित हैं। विवेकानंद जी कहते थे कि अपने आप को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है।
उठो जागो और तबतक नहीं रुको जबतक लक्ष्य नहीं पूरा हो जाता। उनके इन अनमोल वचन को आज के भारत के नौनिहालों को आत्मसात करना चाहिए जिससे एक सुदृढ़ व्यक्तित्व का निर्माण हो सके किसी धर्म संसद या किसी विषय से सम्बंधित सभा  में मेरे  अमरीकी भाइयों और बहनों के सबोधन की तरह ही एक बार पुनः तालियों की गड़गड़ाहट गुंजायमान हो।
कहते हैं कि जो हमें अत्यधिक प्रिय होते हैं उन्हें ईश्वर भी बहुत प्यार करता है, या जिसकी हमें ज्यादा जरूरत होती है भगवान को भी उनकी जरूरत होती है।इस विलक्षण प्रतिभा के धनी महान आत्मा की आत्मा 4 जुलाई 1902 को बेलूर मठ में सदा के लिए ब्रह्मलीन हो गई।
विवेकानंद जी का व्यक्तित्व उनके  विचार उनके व्याख्यान सदियों तक चर्चित और अनुकरणीय रहेंगे।
स्नेहलता पाण्डेय ‘स्नेह’
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