एक थे स्वामी विवेकानन्द जी
असली नाम था उनका नरेन्द्र नाथ दत्त
वो थे ऐसे युवा
जिसने साधु बन दुनिया को
भारत की असली पहचान कराई
पच्चीस की उम्र में ही लिया इन्होंने सन्यास
छोड़ घर बार देश के आने लगे काम
रामाकृष्ण परमहंस के शिष्य बन
पूरी दुनिया में सनातन धर्म का प्रचार किया
हिन्दू हैं हम हिन्दी बोलने में क्यों आऐ शर्म
उनके विचारों पर आज के युवा भी बढाऐ अगर कदम
तो किसमें है दम कि किसी से पीछे रहे हम
संघर्ष से न घबराऐं कभी हम
जितना बड़ा संघर्ष
जीत उतनी ही होगी शानदार
ऐसे थे उनके विचार
हम करते हैं ढेरों काम एक साथ
और कर नहीं पाते कुछ भी सही से
एक समय में एक काम करना और
अपनी पूरी आत्मा उसमें डाल देना
बाकी सब भूल जाना तन मन सब झोंक कर
अपने लक्ष्य को पा लेना हो जाऐगा आसान
अगर चलेंगे स्वामी जी के दिखाऐ पथ पर
उनके हर विचार बदल देंगे हमारा जीवन
समस्या आती है और वो आती रहेंगी
उनका था कहना
जिस दिन आपके सामने समस्या आए नहीं
आप यकीन कर सकते हैं कि
आप गलत रास्ते पर चल रहे हैं
हम खुद को अकसर समझने लगते हैं कमजोर
पर ऐसा सोचना भी है सबसे बड़ा पाप
ऐसा था उनका मानना
कोई काम ऐसा नहीं जो न कर सके मानव
खुद में न कभी हीन भावना को आने दें
फिर तो जीत निश्चित होगी हमारी
उठो जागो और तब तक मत रुको
जब तक अपने लक्ष्य को न पा लो
ऐसे युवा स्वामी जी को करते है सादर नमन
बार बार जो हर व्यक्ति में भगवान का रूप देखते थे
और कहते थे उस व्यक्ति ने अमरत्व प्राप्त कर लिया
जो किसी संसारिक वस्तु से प्रभावित न हुआ।
आज का युवा जो अपना धर्म छोड़
अपनी संस्कृति को भूल
नकल कर रहा है अन्य देश का
उनका रहन सहन खान पान अपना
अपनी सभ्यता का कर रहा है त्याग
आज फिर विवेकानन्द स्वामी जी की जरूरत है हमें
जो दिखाए हर मनुष्य को सही राह।
कविता झा’काव्या कवि’
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