आज हर किसी की जिंदगी में
एक ऐसा नया मोड़ आया है।
जहाँ सुख तो हुआ कोसो दूर
हर तरफ सिर्फ गम का ही साया है।।
रक्तरंजित से रंजित है धरा
हर तरफ निराशा के बादल छाए है।
हर घर की देहरी के बाहर
बेखौफ काल खड़ा बाहें फैलाये है।।
दहशतभरा माहौल हर तरफ
जीना दूभर हो रहा है।
महामारी के प्रकोप से देखो
आदमी आदमी को छूने से डर रहा है।
एक जुट होकर हमें ही
मिलकर संघर्ष इतना करना है।
अंधकार को जीत कर एक
नई सुबह का आगाज देना है।।
निराशा के बादल छट जायेगें
दुख की काली रात भी बीत जाएगी।
तभी तो नई सुबह हमारे जीवन में
एक नया मोड़ पर ले कर आयेगी।।
शीला द्विवेदी “अक्षरा”
उत्तर प्रदेश “उरई”