ऊषाकाल सी लाली मुख पर,आया जोश नया है।
उनींदी आंखों से जाग कर पाया होश नया है।
हर ओर सुनहरी ऊर्जा का स्वर्ण घेरा छाने को है,
गौरवान्वित आभा युक्त एक नया सवेरा आने को है।।
आशाओं की अरुणोदय से अति घबराती हूई।
जाती दिखती है दुःख भरी रजनी शर्माती  हूई।
विहंगो के सुरीले स्वर मधुर रस बरसाने को है,
गौरवान्वित आभा युक्त एक नया सवेरा आने को है।।
उर सन्ताप का घनघोर तमस बस छंटने वाला है
कुहासा ये दीर्घश्वास सा अब बस घटने वाला है
नभ की कीर्ति रश्मियां व्याकुल धरा पाने को है
गौरवान्वित आभा युक्त एक नया सवेरा आने को है
शतदल की बंद पंखुड़ियों में बन्दी बेसुध पड़ा था
मन भ्रमर अभिलाषाओं के जंजाल मध्य जकड़ा था
मृदु छद्मावरण से परे स्वतंत्र बसेरा बसाने को है
गौरवान्वित आभा युक्त एक नया सवेरा आने को है
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 मौलिक व स्वरचित~ कीर्ति रश्मि “नन्द( वाराणसी)
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