वीरान हवेली हो कोई,या हो गरीबों का खंडहर।
ज्यादातर देखने में लगता,ना जानें क्यों भूतहर।
उसमें रहने वालों के करम,कुछतो ऐसे रहे होंगे।
उससे न परिवार ही खुश,न समाज ही रहे होंगे।
कुछ प्रारब्ध का लिखा होता,जो है भोगा होगा।
कुछ की मनहूस नजर ये,खुद पे भी लगा होगा।
वीरान हवेली ये कहती,कभी इमारत बुलंद थी।
खंडहर भी यही कहता,कभी इमारत बुलंद थी।
कभी कर्म हमारे हमको,गड्ढे में लिए चले जाते।
खुद से न समझ आता है,हमको कहाँ ले जाते।
नशा एवं अय्याशी ने,बड़ों बड़ों का नाश किया।
परिवार प्रतिष्ठा व हवेली, सब सत्यानाश किया।
वीरान हवेली में रहना भी,ये दुस्कर हो जाता है।
खुशी में न हो सौगात कोई,जो है चला जाता है।
जिसे देखके ही डर लगता,वहाँ कैसे मिले सुख।
आये दिन मिलता रहता,कोई ना कोई यह दुःख।
पीढ़ी दर पीढ़ी रहे नहीं, वीरान हवेली हो जाती।
खंडहर की शक्ल लेलेती,रौनक फना हो जाती।
ऐसे वीरान हवेलियों का,तस्कर करते इस्तेमाल।
कई फिल्मों में देखे होंगे, खंडहरों का इस्तेमाल।
स्मगलिंग के अड्डे होते,छुपने का भी एक स्थान।
ये लोग वहीं रमते जमते,जहाँ न जाता है इंसान।
वीरान हवेलियों से आवाजें,भी कुछ आएं जाएं।
उस रास्ते से आने जाने वाले, सुन कर डर जाएं।
खंडहरों में कभी कभी,ये छुपा खजाना मिलता।
वीरान हवेली का भी,यहाँ राज दफन है मिलता।
यहभी जरूर देखा होगा,इन जासूसी फिल्मों में।
स्क्रिप्ट राइटर लिखते हैं,ये सीन दिखे फिल्मों में।
वीरान हवेली हो या जीवन,दोनों होता है बेकार।
इसे सजा संवार के रखिए,जल्दी न होगा बेकार।
रचयिता :
डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव
वरिष्ठ प्रवक्ता-पीबी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
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