वृन्दावन के परिक्रमा मार्ग में यमुना जी के किनारे कुछ झोपङी नुमा मकानों में कई भिखारी वक्त गुजार रहे थे। वैसे तो भिक्षावृत्ति को उचित नहीं कहा जा सकता पर संसार में बहुत से काम मजबूरी में किये जाते हैं। जिनका कोई नहीं और जिनका शरीर भी साथ नहीं दे रहा, वे किस तरह गुजर करेंगें। वैसे कहा जाता है वृन्दावन में कोई भी भूखा नहीं सोता। सभी के भोजन की चिंता खुद राधा रानी करती हैं। इस विषय में अनेकों किंवदतियां मशहूर हैं जो वास्तव में लोगों की श्रद्धा ही है। पर इतना सत्य है कि वृन्दावन धाम अनेकों अशक्तों को हर रोज भोजन देता है।
जाङों की शुरुआत हो चुकी थी। एक झोंपड़ी में कोई पैंसठ साल की ममता जग रही थी। माना जाता है कि बूढों को, सर्दी में ठिठुरते लोगों को और दुखों के झंझावात में पङे लोगों को बहुत कम नींद आती है। ममता के मामले में तीनों बातें सटीक थीं।
कोई चौदह साल जेल में रही ममता की इच्छा कभी भी जेल से बाहर आने की नहीं थी। बाहर की दुनिया बहुत जालिम है। जेल में जो कष्ट थे, एक गरीब महिला के लिये शायद कुछ भी नहीं थे। पर जेल से बाहर का अपमान सहन कर पाने की स्थिति में वह न थी। उसने जेलर को बहुत अनुरोध किया। पर जेलर भी सरकारी आदेश के आगे असहाय था। ममता को यह आजादी ज्यादा भारी पङी। जेल में कभी भी जाङों की रात वह ठंड में नहीं कांपी थी। पर बाहर आकर उसे जाङों में ठिठुरना पङा। वैसे उसका भी एक घर था। उसका एक परिवार था। पर अब कुछ भी नहीं। फिर जेल से आजाद होकर ममता वृन्दावन चली आयी।
आज की रात ममता को अनेकों बातें याद आने लगीं। बचपन से ममता जवान भी नहीं हो पायी थी कि उसकी शादी हो गयी। उसका पति उसे बहुत प्यार करता था। पर होनी को कुछ और ही मंजूर था। एक बार उसके पति को सांप ने काट लिया। ममता को बहुत दिनों तक लगता रहा कि वह बच सकता था अगर उसे डाक्टर को दिखाया जाता। पर गांव में ज्यादातर इलाज तो सयाना करता था।
छोटा सा रामू ही ममता की जिंदगी बन गया। रामू को कहानियां सुनाकर वह अपने दुख भूल जाती। पता नहीं रामू को किसने बांसुरी बजानी सिखा दी। उसकी बांसुरी सुनकर सब झूम उठते।
गांव में बस प्राथमिक तक पढ़ाई थी। रामू भी उतना पढा जितना गांव में पढ सकता था। अक्सर बङे जमींदार साहब की लङकी रामू के साथ घर आती। बचपन अमीरी या गरीबी नहीं देखता। जमीदार साहब भी बङे नैक दिल आदमी थे। दोनों साथ साथ खेलते। जमीदार साहब की औरत भी नहीं थी। हो सकता है कि जमीदार साहब की नजर में ममता केवल लङकी की देखभाल करने बाली धाय हो पर उन्होंने बेटी को ममता के पास जाने से नहीं रोका। ममता लङकी को बहुत प्यार करती थी और लङकी भी ममता को बहुत प्यार करते थे।
एक दिन वीना शहर पढने चली गयी। पर शायद रामू उसे भूल नहीं पाया। रामू को पढने की ललक थी पर उसके पास पढने का क्या साधन। फिर वह बांसुरी बजाने का अभ्यास करता रहा। जवानी तक पहुंचते पहुचते उसकी बहुत दूर तक पहचान बन गयी। रेडियो में भी वह बांसुरी बजा आया था।
रामू अक्सर बोलता – ” माॅ ।तुमने मेरे लिये बहुत कष्ट सहे हैं। अब और नहीं।”
” अच्छा ।तो फिर कुछ काम कर। मुझे भी आराम हो जाये।”
ममता को रामू की बांसुरी बजाना काम नहीं लगता। उसे क्या मालूम कि हुनर की क्या कीमत है। अक्सर बेटे को कामचोरी के लिये फटकारती रहती।
” झूठ बोलता है तू। तुझे मेरी फिक्र ही कहाॅ है। फिक्र होती तो कुछ काम करता। “
फिर रामू भी माॅ से ज्यादा बहस किये बिना काम पर लग जाता। अब काम क्या। किसी की फसल काटनी है तो रामू चला जाता। किसी को खेतों में पानी लगवाना है तो रामू लगा देता। गांवों में यही मजदूरी मिलती। भले ही ममता को रामू आलसी लगता पर रामू की मेहनत की कद्र थी। यह बात दूसरी थी कि वह माॅ के हाथ में पैसे नहीं रखता था।
एक दिन रामू अपने घर भैंस खरीद लाया।
” यह किसकी भैंस ले आया।”
” किसकी क्या। खरीद के लाया हूं।”
ममता को उस दिन विश्वास आया कि उसका लङका कितना मेहनती है। उसने खुद की मेहनत से एक भैंस भी खरीद ली। रामू मंद मंद मुस्करा रहा था और ममता उसे आशीर्वाद के तराजू पर तौले जा रही थी। ईश्वर ऐसा गुनी पुत्र सबको दे।
रामू का बुलावा शहरों से भी आने लगा। तब ममता को लगा कि बांसुरी बजाना भी पैसे कमाने का जरिया हो सकता है। घर की आय भी ठीक ठाक हो गयी। पर ममता को अभी एक ही चिंता थी। हर माॅ की तरह वह भी स्पष्ट देखती थी कि जल्द रामू का व्याह हो। एक अच्छी सी बहू घर आये। पर रामू हमेशा बात टाल देता। फिर जब एक दिन उसने बोला तो ममता को लगा कि उसके पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक गयी हो।
” यह तू क्या बोल रहा है। यह कभी भी नहीं हो सकता। हमेशा अपनी औकात में रहकर ही स्वप्न देखे जाते हैं।”
पर रामू ममता की बातों को समझ न सका। औकात जैसी बातें न तो प्रेमी समझते हैं और न नये उभरते लोग। रामू के साथ दोनों स्थितियां थीं। भले ही वह बहुत रईस न था पर अपनी कला से अच्छा कमा रहा था। ऊपर से उसे प्यार का भूत लग गया। फिर प्रेमी कब ऊंच और नींच समझता है।
” अरे बेबकूफ । हम कहाॅ और वे कहाॅ। एक जमीदार की लङकी भला कैसे तुझ जैसे फटेहाल को स्वीकार करेगी।”
ममता को विश्वास भी नहीं हुआ कि प्रेम का रोग दोनों तरफ लगा है। शहर में आयोजन के दौरान रामू अक्सर वीना से मिलता रहा है। कब दोनों ने साथ जीने और साथ मरने की कसमें खा लीं। वीना को फिल्म नदी के किनारे का गीत ‘कौन दिशा को’ बहुत पसंद था। वीना की फरमाइश पर रामू इस गाने की धुन निकाल कर वीना को सुनाता था। ऐसी ही अनगिनत बातें रामू ने ममता को बतायी। जिन्हें ममता झूठ ही मानती रही। भला यह भी क्या संभव है।
ममता रामू की बात पर कभी यकीन नहीं करती अगर खुद जमीदार साहब उससे न कहते।
” ममता। तुझे पता भी है कि तेरे लङके ने क्या किया है।”
” क्या हुआ मालिक।”
” सचमुच मालुम नहीं है या मुझे बेबकूफ बना रही है।”
” ऐसा मत बोलो मालिक।”
“. अरे वीना तो भोली है। पर तुम्हारे बेटे ने उसे बातों में फसाया है। आज तक हमेशा मेरी बात मानती आयी मेरी बेटी आज मुझसे जिद कर रही है। अब उसे वैभवपूर्ण जीवन नहीं चाहिये। उसे तुम्हारे लङके का साथ चाहिये। वीना को दुनिया दारी की बिलकुल समझ नहीं है। तभी तो वह ऐसा कह रही है। “
” माफ करो मालिक। मुझे कुछ नहीं पता। मैं रामू को समझाऊंगी। “
फिर ममता ने रामू को बहुत समझाया भी। रामू समझ गया। कुछ दिन सब शांत रहा। पर वास्तव में वह तूफ़ान से पूर्व की शांति थी।
एक दिन रामू और वीना दोनों अदालत में विवाह कर घर आ गये। ममता को तो यह भी नहीं पता था कि विवाह अदालत में भी हो सकते हैं।उसकी जानकारी में अग्नि के सात फेरे लेना ही विवाह है। दोनों कानूनन वालिग थे। जमीदार साहब कुछ भी नहीं कर पाये।
बङे घर की बेटी। भला गरीब के घर कैसे रहेगी। कुछ ही दिनों में जब उसकी आवश्यकता पूरी नहीं होंगीं तो फिर वीना अपना प्रेम भूल जायेगी। रामू भी कुछ नहीं कर पायेगा। जीवन दुखों का पर्याय बन जायेगा। आखिर बुजुर्ग भी मानते हैं कि शादी विवाह बराबर बालों में करना चाहिये। ऐसी अनगिनत आशंकाएं ममता के मन में थीं।
पर जैसे जैसे वक्त गुजरता गया, सारी आशंकाएं गलत सिद्ध होती गयीं। ममता ने अभी तक अपने जीवन में बहुत दुख पाये थे। पर अब उसका सुखद समय था। बेटा और बहू दोनों उसकी बात का मान रखते। ममता को भी अब बेटे की पसंद पर फक्र होने लगा। वास्तव में बङे घरों की बेटियां हर बात में बङी होती हैं। वीना को घर में कोई रोकटोक नहीं थी पर शायद खुद को रामू के साथ का दिखाने का जुनून था कि वह एकदम देहाती तरीके से रहने लगी। पूरे घर की व्यवस्था वह सम्हाल रही थी। वैसे ममता को किसी ने बताया नहीं पर ममता जानती थी कि कितने ही कामों में रामू चुपचाप वीना की मदद करता था। पर इसमें छिपाने की क्या जरूरत है। पति को भी कुछ घर की जिम्मेदारी उठानी चाहिये और पत्नी भी कोई घर में बंधी नहीं रहनी चाहिये, यही ममता के विचार थे।
वह भी जाङे की रात थी। ममता को यह तो ध्यान नहीं कि रामू को किसने बुलाया पर वह गया किसी के खेत में पानी देने ही। हालांकि अब वह बांसुरी वादन से अच्छा कमा रहा था पर गांव बालों का अदब भी वह बहुत करता था। इन्हीं लोगों के साथ वह बचपन से रहता आया है। तो उसमें कोई ज्यादा बदलाव नहीं हुआ था।
” अम्मा। बहुत देर हो गयी। अभी तक वे नहीं आये।”
घबरा तो ममता भी रही थी। पर वीना जब रामू को ढूंढने निकलने लगी तो ममता ने उसे मना कर दिया।
” वीना। रामू आ जायेगा। थोङा देर हो गयी है। इतनी रात गये तुम्हें बाहर नहीं निकलना चाहिये।”
” अरे अम्मा। आप भी ना। ” वीना एकदम ममता के गले लग गयी।” मैं अभी उन्हें लेकर आती हूं।”
वीना भाग गयी। ममता पीछे चिल्लाती रही।
” लङकी बिलकुल नहीं बदली है। अभी तक बचपना गया नहीं है। “
ममता ने मन में सोचा और फिर उनकी वापसी की राह देखती रही। पर वह दिन कभी भी नहीं आया। आज तक ममता रामू और वीना की वापसी की राह देख रही है।
क्रमशः अगले भाग में….
दिवा शंकर सारस्वत ‘प्रशांत’