मैं नहीं निहारती हूं दर्पण
मैं खुद को तुम्हारे आंखों में संवार लेती हूं
तुम्हें देख तुम्हारे प्रेम का श्रृंगार सजा
मैं खुबसूरत कहलाती हूं
अपने आंखों में ,
मैं तुम्हें बसा ,बस तुम्हें निहारती हूं
गुनगुनाती है आलिंगन
और मैं मुग्ध हो जाती हूं
मैं तुमसे प्रेम रचा
तुम्हारे प्रेम से श्रृंगार सजाती हूं
सुनो प्रिये ❤️
तुम्हें पलकों में बसा
मैं काजल सजाती हूं
मैं तुम्हें देख कर स्वत:
खुबसूरत हो जाती हूं
नहीं निहारती हूं मैं दर्पण
तुम्हारे आंखों से मैं खुद को संवारती हूं
सुनो प्रिये ❤️
घने काले जुल्फों की बादल जब फैलाती हूं
मधुर मधुर प्रेम बारिश में
मैं भींग जाती हूं
प्रिया प्रसाद