सबके नज़र अलग है,
नज़रिए भी अलग है,
कोई किसकी सूरत पे मरता है,
तो कोई किसिके दिल पे….
कुछ वक्त आया था मेरी जिंदगी में,
जब हम उसके आंखों में देख के खो गए थे,
उसके काली काली आंखें,
सिंदूर से भी लाल उसके होठ,
फूलों से सजी उसके नथनी,
जो सबके नज़र खींचे अपनी और….
बिना पैर के खड़ा है,
दो बाहें फैला के,
लग जाए डोर उसके तो बात ही कुछ और है…
एक पल,बस एक पल खड़े हो जाओ
उसके आंखों में देख के,
लगेगा जैसे पूरी दुनिया ही बेकार है,,,
कोई जाकर उसके आगे झुक जाता है,
कोई जाकर उसे गाली सुना देता है,
और वो बस मुस्कुरा कर सब सुनता है,
जिसको जो चाहे वो देता है,
पूरे धरती में अपना नाम रोशन किया,
एक ही चुटकी में अपनी श्रृंगार से सबको मोहित किया,,
पच्चीस भेष उसका होता है ,
हर रूप में वो पैरों से सर तक अपरूप लगता है,
मां के हाथ पकड़ कर जब पूछी थी की ये कौन है,
मां ने हाथ जोड़ कर बताई थी,
ये तो जगत के नाथ जगन्नाथ है……..
स्वरचित मौलिक
ज्योति महापात्र
ओडिशा