धीरे धीरे रात गुजर गयी। न तो रामू वापस आया और न वीना। अब तो ममता का दिल जोरों से धङकने लगा। अनिष्ट की आशंका से वह रोने लगी। फिर ममता खुद उन्हें तलाशने निकल ली।
ईष्र्या की अग्नि अक्सर संबंधों को खराब कर देती है। इतने कई सालों तक गांव बालों के साथ रहते आ रहे ममता और रामू को शायद अंदाजा भी नहीं था कि बहुत कुछ बदल गया है। वैसे बदलाव तो रामू के बांसुरी वादन से घर के हालात सुधरने से शुरू हो चुका था। ममता की हैसियत अब पहले से बहुत अच्छी थी। अब वह किसी की मजदूरी नहीं करती थी। वैसे मजदूरी तो अब रामू भी नहीं करता था पर पुराने अदब के कारण अब भी उनका साथ दे देता। उनकी तरक्की से ईष्र्या रखने बाले बहुत हो गये ।
फिर जब रामू ने रामचंद्र जी की बेटी वीना से विवाह कर लिया फिर तो लोगों की ईष्र्या आसमान पर चढ गयी। वीना रामचंद्र जी की इकलौती बेटी है। भले ही रामचंद्र जी अभी बेटी से नाराज हैं पर पिता की नाराजगी भला कब तक रहेगी। अब उन्हें रामू जमींदार साहब की अकूत संपत्ति का वारिस दिखने लगा। भविष्य में क्या होगा, यह तो कोई नहीं जानता। पर कुछ अच्छा हो जाये, ऐसी चाह किसी में न थी। अधिकांश नहीं चाहते थे कि गरीबी में जीवन जीते आये ममता और रामू उनसे आगे बढें।
शायद रामू इस बदलाव को समझ रहा था। तभी तो बार बार वह अपनी अम्मा से गांव छोङकर शहर में रहने के लिये कहता था। पर ममता इतनी समझदार न थी। उसे लगता कि रामू को शहर का रंग चढने लगा है। वैसे वह अब भी कई बार रामू से नाराज हो जाती। अब रामू के साथ साथ वीना भी उसे मनाती। ममता बस यही चाहती थी कि बच्चे जमीन से जुङे रहें। अगर कुछ उन्नति कर रहे हैं तो उस उन्नति में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से गांव बालों का भी हाथ है। फिर अच्छा है कि खुद की उन्नति के साथ साथ अपने साथियों की भी उन्नति भी की जाये।
सद्विचारों की कद्र करने बाले बहुत कम होते हैं। होना तो चाहिये था कि रामचंद्र जी को लोग समझाते। वे इतने बुरे व्यक्ति तो नहीं थे कि रामू को न अपना पायें। पर ऐसा कभी न हुआ। वीना से विवाह को रामू की चालाकी बताने बाले बहुत थे। वैसे रामचंद्र जी को किसी ने सीधे सीधे कुछ कहा, कहा नहीं जा सकता। पर ऐसी झूठी बातें उनतक तो पहुंचती ही थीं।
ममता ने कितनों से मदद मांगी। पर कोई भी उसकी मदद करने को आगे नहीं आया। फिर वह अकेली ही गांव के खेतों की तरफ चल दी। घूमते घूमते शाम होने को आ गयी। पर न तो रामू मिला और न वीना। बदहवास सी वह भटकती रही। उसे न खाने का होश था और न पीने का ।
ममता को ऐसा कोई नजर नहीं आ रहा था इस समय उसकी मदद कर सके। फिर उसके विचार में ऐसा व्यक्ति आया जिसके घर वह सालों से नहीं गयी थी। ठीक है कि मालिक कुछ नाराज हैं। पर इस समय वही तारणहार सिद्ध होंगें। आखिर वीना उनकी ही बेटी है। मालिक सक्षम हैं। बङे बङे अधिकारियों से उनकी जान पहचान है। वही मेरे बेटा और बहू को लेकर आ सकते हैं। बस इतना मन में आते ही आशा की एक किरण ममता के मन में उठी और वह गांव की तरफ वापस आने लगी।
सचमुच मालिक को अपनी बेटी की बङी फिक्र है। मैं बेबकूफ न जाने कहाँ कहाँ भटक रही थी। मालिक ने तो बच्चों को तलाशने के लिये पुलिस भी बुला ली है। अब जल्द ही बच्चे मिल जायेंगें।
“. मालिक । रामू और वीना रात से घर नहीं आये हैं। कुछ करिये।” फिर ममता ऊंचे स्वर से रोने लगी।
” मुझे बेबकूफ बनाती है। बता कहाॅ है तेरा बेटा। क्या किया है मेरी बेटी के साथ। अब रामू कौन सा मजदूरी कर रहा है जो किसी के खेत में पानी देने गया था और नहीं आया। फिर मजदूरी करने रामू गया होगा। मेरी बेटी कहाॅ है। “
ममता ने सब सच बता दिया। कैसे वीना रामू को बुलाने गयी थी और दोनों वापस नहीं आये। पर ममता की बात पर यकीन करने का कोई कारण भी नहीं था। फिर किसी गांव बाले ने उसकी बात की पुष्टि भी नहीं की। आखिर पुलिस ने सच्चाई पता करने के लिये ममता को हिरासत में ले लिया।
……………
ममता की यादों में ये सबसे खराब यादें थीं। वैसे वह इन्हें याद भी करना नहीं चाहती थी। पर यादों पर इंसान का क्या वश।
ममता को एक कुर्सी पर बिठाकर इंस्पेक्टर ने उससे बहुत से प्रश्न किये। जिनका ममता ने सही सही उत्तर दिया था। पर पुलिस की नजर में वह सब झूठ था। आखिर में ममता को महिला पुलिस के हवाले कर दिया गया। एक रात पहले सो न पायी ममता पूरी रात फिर नहीं सोने दी। खाने में बेशुमार गालियां और थप्पड़ मिले तो पीने को सिर्फ आंसू। पर शायद यह तो अत्याचार की शुरुआत थी।
अगले दिन ममता अदालत में प्रस्तुत की गयी। ऐसे मामलों में जज अक्सर पुलिस रिमांड दे देते हैं। फिर इस केस के लिये रामचंद्र जी ने सरकारी बकील के साथ अपना बकील भी खङा कर दिया। फिर एक सीधी साधी निर्धन महिला को आसानी से खतरनाक अपराधी सिद्ध कर दिया गया। पुलिस को ममता से पूछताछ के लिये पर्याप्त समय दिया गया। इतना समय कठोर से कठोर अपराधी को अपराध स्वीकार कराने को पर्याप्त होता है।
उसके बाद की यादें ममता को विचलित करने लगीं उनका सही उल्लेख अनेकों पाठकों को विचलित कर सकता है। तो उनका उल्लेख न करना ही ठीक है। आखिर ममता मजबूर हो गयी कि वह उस अपराध को स्वीकार कर ले जो उसने किया ही नहीं था।
समय हमेशा बदलता है। जेल में ममता ने अच्छे व्यवहार से सभी का दिल जीत लिया। कोई महिला कैदी बीमार हो जाती तो ममता उसकी सेवा में लग जाती। जिन महिला कैदियों के साथ उनके छोटे बच्चे थे, ममता उनकी दादी बन जाती। ममता के गांव में कितने उसे निर्दोष मानते, कह नहीं सकते। पर जेल में बङा वर्ग उसे निर्दोष मानता था। इतने मध्य जेल में कई जेलर आये। ममता सभी का दिल जीत लेती। आखिर उन्हीं के विशेष प्रयासों से ममता आजाद हुई। पर यह शायद जेलर की सबसे बङी भूल थी। ममता का हित चाहते चाहते उन्होंने ममता का बङा अहित कर दिया। पर जब तक बात उनकी समझ में आती, बहुत देर हो चुकी थी। आदेश को बदला नहीं जा सकता था।
…………
पिछली अनेकों सालों से ममता की रातें इन्हीं बातों को याद करके गुजरती। थोङी बहुत देर का आराम भी उसे नसीब नहीं होता। सुबह के पल जैसे ही नींद लगती कि जागने का वक्त हो जाता। आखिर इन भिखारियों के पास कौन सा ऐसा साधन था। कई नित्य कर्म अंधेरे में ही करने होते।
हर रोज की तरह ममता चुपचाप एक मंदिर के किनारे बैठ गयी। उसे संग्रह की कोई चाह नहीं थी। वैसे संग्रह करे भी तो किसके लिये। कोई न कोई भक्त उसे भोजन दे देता। मंदिर से भजन के स्वर उठते। उन्हें सुनकर ममता अपना दुख भुलने की असफल कोशिश करती।
एक गाङी में से एक धनाढ्य व्यक्ति उतरा। दूसरे भिखारी उससे मांगने के लिये भागे। ममता किसी के पीछे नहीं भागती थी। पर आज ममता भी उठ ली। पर धनाढ्य के पीछे जाने के लिये नहीं, बल्कि उसकी नजरों से दूर होने के लिये या खुद की नजरों को उससे दूर करने के लिये। ममता अब और अपमान नहीं सहन कर सकती थी तथा न खुद का अपमान करने बाले को देख पाने की हालत में थी। भिखारियों को हटाते हुए वह धनाढ्य ममता के पैरों में गिर पङा। गूं गूं कर उठता स्वर फिर तीव्र रुदन में बदल गया। दूसरे भिखारियों और पर्यटकों के लिये यह अनोखी बात थी। देखने बालों की भीङ लग गयी।
क्रमशः अगले भाग में….
दिवा शंकर सारस्वत ‘प्रशांत’