मैं न मानूंगी तोरी बरजोरी…,जाने दे मैयका,सुनो सजनवा…,
जैसी बंदिशों पर कभी तबले पर थाप देते ,तो कभी सुर साधते और कभी घुंघरूओं संग ताल मिलाते। कत्थक जिसका मजहब था , छंद जिसका ईमान ,रविवार रात उस छंद के पुलिंदे बिखर गए,ताल और लय का रिश्ता टूट गया,एक गहरी खामोशी के साथ थिरकते पैर सदा के लिए खामोश हो गए ।कला जगत गमगीन हो गया अपने इस अनमोल रत्न बिरजू महाराज को खो कर।
हर कोई इस बहुप्रतिभा के धनी व्यक्तित्व की असामयिक मृत्यु से स्तब्ध है,अपने परिवार और शिष्यों के साथ खेलते खेलते आपने 83 साल की उम्र में अंतिम श्वास ली।
आप किसी परिचय के मोहताज तो नहीं लेकिन लोगों को आपकी प्रतिभा ,अनछुए पहलू से परिचय कराना मेरे लिए आपके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है।
आपका जन्म 4 फरवरी 1938 में लखनऊ के कालिका बिंदादीन घराने में हुआ था।
आपके नामकरण को लेकर भी बड़ी दिलचस्प बातें कही जाती है ,कहा गया कि जिस दिन अस्पताल में आपने जन्म लिया उस दिन उस वार्ड में सभी लड़कियों का ही जन्म हुआ था इसीलिए सबने कहा बृज का मोहन आया है ,और आपका नाम बृजमोहन मिश्र हो गया।
आपके पूर्वज प्रयागराज के हंडिया गांव से थे।
उस समय अवध के दरबार में कला को भरपूर सम्मान प्राप्त था।
नवाब वाजिद अली ने कत्थक को बढ़ावा दिया था ,उनके दरबार में दुर्गा प्रसाद और ठाकुर प्रसाद नाम के प्रसिद्ध दरबारी नर्तक और नृत्य गुरु थे।दुर्गा प्रसाद और ठाकुर प्रसाद ने ही बिरजू महाराज (आपके) के दादा ,बाबा को लखनऊ में बसवाया।
कहते हैं आपके बाबा के समय नवाब पालकियां भेजते थे उन्हें लाने को,पैसे रुपए की कोई कमी नहीं थी।
लेकिन समय का पहिया बदला ,अवध के अंतिम नवाब को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर कोलकाता भेज दिया।
ताल और घुंघरूओं को महारास में तब्दील कराने वाले नवाब यहां से चले गए। बुरा वक्त शुरू हुआ ,आपके पिता और चाचा रामपुर के नवाब के दरबार में नौकरी करने लगे।
आपमें अपने पिता की तरह संतुलन ,चाचा शंभू तरह जोश और चाचा लच्छू की तरह लाष्य की त्रिवेणी बहती थी।पिता अच्छन महाराज जिनका असली नाम जगन्नाथ मिश्र था,उनसे आपने 6 साल की उम्र में गंडा बंधवाया ,अर्थात औपचारिक शिक्षा लेनी शुरू की।
9 वर्ष की आयु में पिता ने आपका साथ छोड़ अपनी आखरी सांस ली,उसके बाद चाचाओं ने आपकी शिक्षा जारी रखी।
आपका विवाह बहुत कम आयु में हो गया था ,आपका ससुराल बनारस का था।
90 के दशक में आपने अपना नृत्य स्कूल कलाश्रम शुरू किया।
आपके ऊपर मां सरस्वती की असीम कृपा थी ,आपकी पकड़ नृत्य,कविता,चित्रकारी और शास्त्रीय संगीत जैसे ठुमरी , दादरा,गजल और भजन पर एक बराबर थी।जितने आपके सधे पांव लय पर थिरकते थे, उतना ही आपकी उंगलियां वाद्य यंत्रों पर भी थिरकती थीं,तबला,हरमोनियम पर आपका पूर्ण नियंत्रण था।
फिल्म शतरंज के खिलाड़ी में आपने गीत भी गाया था जिसे आपके दादा जी बिंदादीन ने लिखा था ।
आपने देश विदेश में कई प्रस्तुतियां दीं,और कत्थक में कई आमूलचूल परिवर्तन किए आपने इसे नृत्य नाटिका से जोड़ा।
आपको पद्मविभूषण,संगीत कला अकादमी पुरस्कार,कालीदास पुरस्कार,काशी हिंदू विश्वविद्यालय,और खैरागढ़ विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि से नवाजा गया था।
फिल्म जगत में आपने नृत्य संयोजन और गायन द्वारा अपनी प्रतिभा के झंडे गाड़ दिए थे।देवदास,उमराव जान, बाजीराव मस्तानी,विश्वरूपम जैसी फिल्मों के लिए आपको फिल्मफेयर,राष्ट्रीय फिल्म अवार्ड से नवाजा गया था।
इतनी उपलब्धि हासिल करने के बाद भी आप अत्यंत विनम्र थे।लखनऊ में आते ही आपका बचपन में छतों पर पतंग की पेंच दोस्तों संग लड़ाना , रबड़ी खाना याद रहता है।आपकी पसंदीदा नेतराम की जलेबी और खस्ता हमेशा लखनऊ वालों को याद रहेगी ।
2 अप्रैल 2014 को आपने अपनी ड्योढी का हस्तांतरण 1 रुपए टोकन लीज पर संस्कृति विभाग को कर दी।1856 की इस ड्योढी की दर ओ दीवार में कत्थक का इतिहास सिमटा है।आपके अथक प्रयासों से इसे कत्थक का संग्रहालय बनाया गया है।
बकौल मालिनी अवस्थी ,आप जहां भी जाते थे ,लखनऊ भी साथ जाता था ।आपकी रग रग में लखनऊ बसा था।
हम सभी की भावभीनी श्रद्धांजलि।🙏