जाने कहाँ गुम है वो कलम का ज़माना
रबर पेंसिल किताब कॉपीयां
कितना अनमोल था इनसे याराना
ब्लैकबोर्ड की जगह ले ली है आज आई पैड ने,
लिंक पर क्लिक करते ही स्कूल का घर आने लगा है,
क्या वाकई पढ़ाई का अर्थ बच्चों को समझ आने लगा है…?
दबी सी रह गयी है मासूमियत मोबाइल रुपी डब्बे में,
वो फुटबॉल, लंगड़ी टांग और पतंग उड़ाना 
कैद है मोबाइल के बटनों में हंसी और ग़म का फ़साना
जाने कहाँ गुम है वो गली क्रिकेट का ज़माना
ले ली है आज जगह इनकी कैंडी क्रश और पबजी जैसे खेलो ने,
लग गया है मासूम आँखों पर दोहरी आँखों का ताना बाना,
जाने कहाँ गुम है वो अनमोल खज़ाना
मानसिक अवसाद और चिड़चिड़ापन
घेर लिया है अनेक विचारों ने,
क्या वाकई हो रहा मानसिक विकास या हो रहा मानसिक और शारीरिक ह्यास…
रुक रहा शारीरिक विकास,
विचारणीय तथ्य है ये..
आसान लगता है माता पिता को
हाथ में उनके स्मार्टफोन थमाना,
पर उन्हें नहीं ज्ञात नष्ट हो रहा,
बाल विकास का ताना बाना,
लाना होगा वापस हमें फिर से खेल कूद का तराना
बैडमिंटन, टेनिस और क्रिकेट 
आज से ही कम करना होगा मोबाइल खेलो का याराना ..
निकेता पाहुजा
रुद्रपुर उत्तराखंड
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