इस तरह खयालों में आया न कर
करवटों में रात भर जगाया न कर
जिस्म उतार कर चली आऊंगी
यूं आवाज देकर बुलाया न कर ।
अलसाइ सुबह सवाल करती है
ख्वाब न आए मलाल करती है
भूलकर जमाना नाम तेरा लूंगी
यूं मेरे सब्र आजमाया न कर ।
जिस्म…….………
उतना ही तूफान समेटे हूं दामन में
जितना सुकून दिखता है जीवन में
टूट जाए न बांध पलकों का
यूं याद मांजी कि दिलाया न कर ।
जिस्म…..………..
क्या होता है टूट कर बिखरना
कतरा – कतरा खुदकुशी करना
तुम्हें खोकर जाना है मैंने भी
यूं दास्तां अपनी सुनाया न कर ।
जिस्म………….
स्वरचित :
पिंकी मिश्रा
भागलपुर बिहार ।