हर बात के प्रगट होने का समय होता है। वैसे न तो रंजना को याद आया और न रोहन को स्वप्न का पूरा अर्थ समझ आया पर रामचंद्र और ममता के बताने पर वे भी मानने लगे कि वे ही रामू और वीना हैं। दोनों जन्म जन्म के साथी हैं। तभी तो दोनों पहली ही मुलाकात में एक दूसरे को पसंद करने लगे।
अगर दोनों एक बार रामचंद्र जी के गांव घूम आयें तो शायद बहुत याद आ जाये। फिल्मों में ऐसा ही दिखाया जाता है। पर ऐसे नाजुक समय पर उन्हें घर से निकलने से भी मना कर दिया गया। जब तक असली अपराधी पकङा नहीं जाता, वे घर में ही रहेंगे। रोहन अब रंजना के घर में रह रहा था तो महेश पल्लवी के घर में। वैसे दोनों के अभिवावक उन्हें घर भी ले जा सकते थे। पर एक बार निराश हुए व्यक्ति को जब आशा का अबलंबन मिलता है तो वह ज्यादा ही सकरात्मक सोचने लगता है। पहले तो पुलिस ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी। पर रामचंद्र जी के पहल पर अब इतनी फुर्ती दिखाई कि सभी को लगने लगा कि अपराधी जल्द पुलिस की गिरफ्त में होंगें। न जाने कितने गुंडों और हिस्ट्रीशीटर को पकङकर पुलिस ने तोङा। अनेकों आधुनिक तरीके भी अपनाये। पर बहुत दिन गुजर जाने पर भी कोई नतीजा नहीं आया।
एक दूरसंचार कंपनी का अधिकारी राज रामचंद्र जी को बहुत मानता था। उसका भी एक कारण था। एक गरीब पिता के बेटे की हैसियत इतनी न थी कि वह इंजीनियरिंग कर पाये। पर जब उसका इंजीनियरिंग में नम्बर आ गया तो रामचंद्र जी ने उसकी बङी मदद की थी। अक्सर लोग समय निकल जाने पर खुद का अतीत भूल जाते हैं। पर राज को खुद का अतीत याद था। वैसे रामचंद्र जी से बात किये बिना महीनों गुजर जाते पर जब भी वह गांव आता तो हमेशा रामचंद्र जी से मिलकर जाता। कई बार तो रामचंद्र जी मिलते भी नहीं। क्योंकि वह भी अक्सर वृन्दावन में घूमने निकल जाते थे।
पुलिस विभाग द्वारा अक्सर अपराधियों की काल डिटेल मांगी जाती थी। उससे भी अलग कई अपराधियों की काल रिकोर्ड की जाती थी। हालांकि इस कार्य के लिये भी सभी पुलिस बाले अर्ह नहीं होते हैं। चुने हुए इंस्पेक्टर और सब इंस्पेक्टर की टीम इस कार्य को करते हैं। काल रिकार्ड करने के लिये तो प्रदेश सरकार के गृहमंत्रालय से भी अनुमति पत्र भेजा जाता है। पर यथार्थ है कि यह सब तो औपचारिकता हैं। जिस दरोगा की नियुक्ति संबंधित कार्य के लिये हो जाती, उसके पत्र को भला कौन रोकता है।
आज राज उन नम्बरों को रिकोर्डिंग से हटा रहा था जिनका समय पूर्ण हो चुका था तथा रिकोर्डिंग एक्सटेंड का कोई पत्र नहीं आया था। अचानक राज रुक गया। वैसे मोवाइल के जमाने में नम्बर याद रखना आसान नहीं है पर रामचंद जी का मोवाइल नम्बर राज को मुंहजवानी याद था। फिर रामचंद्र जी का नम्बर रिकोर्डिंग के लिये कैसे लगा है। रामचंद्र जी तो खुद बहुत अच्छे इंसान हैं। वे कोई अपराधी तो नहीं हैं।
पुराने पत्रों की फाइल निकाली तो स्पष्ट था कि तीन महीने पूर्व रामचंद्र जी का नम्बर रिकोर्ड के लिये लगाया गया था। रिकोर्डिंग सुनने के लिये दूसरा नम्बर भी पुलिस विभाग द्वारा अक्सर भेजे जाने बाला नम्बर न था। सचमुच पुलिस विभाग में भी अनेकों लोग ऐसे हैं जो पैसों के लिये अपना ईमान भी बेच देते हैं। जो वेतन तो सरकार से पाते हैं पर नौकरी अपराधियों की करते हैं।
तीन महीने पूर्व रामचंद्र जी की काल डिटेल भी मांगी गयी थी। संयोग की बात ऐसी थी कि उस समय राज अवकाश पर था। बुलंदशहर की पुलिस अपराधियों को कभी ढूंढ भी न पाती यदि आज संयोग से राज इन बातों को समझ न पाता। भला इतनी गहराई से कौन देखता है। पुलिस विभाग से आये पत्र को देखकर तुरंत कार्यवाही हो जाती है।
रामचंद्र जी का इतना प्रभुत्व था कि मथुरा पुलिस ने खुद के दरौगा को गिरफ्तार किया। फिर पूछताछ के दौर में पहली बार दरौगा जी को वर्फ की सिल्लियों पर लिटाकर चमङे के बेंतों से पीटा गया। अक्सर अपराधियों को अमानवीय तरीके से पीटने बाले दरोगा जी थोङी सी पिटाई भी बर्दाश्त न कर पाये। उन्हे इस काम को करने के लिये बङी भारी कीमत मिली थी। पर वह कौन लोग थे, यह उन्हें भी नहीं मालूम था।
जिस नम्बर पर काल सुनी जा रही थी, उसका नाम और पता सब फर्जी था। अब वह नम्बर बंद था। पर अपराधियों की इतनी सतर्कता के बाद भी उनसे एक गलती तो हो ही गयी। कह सकते हैं कि शातिर से शातिर अपराधी भी अपना सुराग छोङ जाता है। काल डिटेल में काल की सूचना के साथ साथ मोवाइल फोन का आई एम ई आई नम्बर भी आता है। तथा उस मोवाइल पर अब जो सिम चल रही थी, उसकी डिटेल देख कर रामचंद्र जी खुद चौंक गये।
क्रमशः अगले भाग में….
दिवा शंकर सारस्वत ‘प्रशांत’