ओ माँ! आज मैं निःशब्द हूँ,
तेरी महान उपकार का एक शब्द हूँ…
हाँ आज मैं निःशब्द हूँ…..
वो यादें अंगुली पकड़कर चलने की,
बचपन की खुबशूरत वो लम्हा थी…
माँ की ममता की एक तरप में,
उमड़ता प्यार की भूख हूँ मैं…
हाँ आज मैं निःशब्द हूँ…..
पहली अक्षर का ज्ञान तुमने सिखायीं थी,
“माँ” कहने की आदत भी तुमने लगाई थी…
मिला “पापा” का प्यार से लोट-पोट हूँ मैं…
हाँ आज मैं निःशब्द हूँ…..
हमेशा याद आती है बचपन,
मुस्कुराता हूँ अलौकिक आनंद में…
अब कहाँ लौटेगा फिर चित्कारी,
वो बनाते नख़रे की रूप हूँ मैं…
हाँ आज मैं निःशब्द हूँ…..
✍️ विकास कुमार लाभ
मधुबनी(बिहार)