,
मेरे माथे की बिंदिया पिया,
कभी तेरी निदिया ,
चुरा लिया करती थी।
तेरी नज़रों को कहा,
कोई मेरे सिवा भाती थी।।
मैं भी हर वक़्त ख़ुद को,
तेरे लिए सँवारा करती थी।
एक तेरी नजर की ख़ातिर है
मैं न जाने कितने,
जतन किया करती थी।।
मग्न थी मैं तुझको पाकर,
तेरी लिए सिंगार करती थी,
तुझसे थी मेरी दुनिया सारी,
मैं गर्व से कहा करती थी।।
फिर बात क्या हुई पिया,
तेरे इस कदर रुठ जाने की!!,
कुछ तो वजह बता
अपने बेरुख़ी की।।
मेरी ख़ता थी क्या इतनी बड़ी 
जो तू माफ न कर पाया,
या मिल गयी कोई तुझसे
जिसका साथ तुझे रास आया है।।
धुरमिल हो गए
सब श्रृंगार पिया
चेहरे की चमक 
कही खो सी गयी।।
एक तेरे इंतजार में पिया
मेरी बिंदिया अब भी रहती है।।
सुमेधा शर्व शुक्ला
Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *