कही दग़ाबाज़ी रिश्तो में
कही झुठ बोलना जारी है,
घर के उलझनों में यहा उलझी
हर एक घरदारी है,,,,
कभी महँगाई की मार में,
अपनी कटौती जारी है,,
कभी बच्चों के शोर में,
पति पत्नी की भी अनबन जारी है।।
बचा रहे रिश्तो का मान,
इसलिए बाते भुलानी पड़ती है।
मन द्रवित को कितना भी,,,
फिर भी मुस्कान सजाना पड़ता है।।
कार्यस्थल पर अपमान भी तो,
फिर क़ाम करना पड़ता है,
परिवार चलाने के लिए ।
साहेब बहुत कुछ करना पड़ता है।।
कही सास बहू में मनमुटाव है
तो कही फूफा का भी टशन जारी,,,
न हो परेशान मानव,
ये हर घर की कहानी है।।
झगड़ा तक़रार,तनातनी जारी है
फिर दुख सुख में सब साथ रहते है।।