लिखो बहता पानी
जन्म दिवस सबके घर
मृत्यु रचे अटल कहानी
पग पग रखें संघर्ष धाराएं
सबको है रीत इसकी निभानी
सिया राम से गृहस्थ जीवन
महाभारत कराता तीखी वाणी
संयम सर्मपण सबके घर
कलह क्लेश करता बेमानी
बह रही है अब भी धाराएं
नहीं रुकता घर घर की कहानी
भरता रहता कोरा कागज
अनुभव लिखता कलम नादानी
खुशीयां बटोरती थी गर्म रोटी
बासी बचा खा कह रही कहानी
बटोर ली ममता घर आंगन
अकेला वृद्ध सुनाता कहानी
ऐसे ही भर रहे कोरे कागज
यही है घर घर की कहानी
प्रिया प्रसाद ✍️