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दुनिया की इस भीड़ मे
ज़ब भी दम घुटने लगता है मेरा
बंद कर लेते है खुद को
इस दिल के अँधेरी तयखाने मे
कहने को तो कोई नहीं होता वहाँ
पर वहाँ भी हज़ारो करवा होते है
फिर भी सून लेते है हम कानो से अपनी
धड़कनो की आवाज़ इतनी तेज़ होते है
उस तयखाने के हर दीवारों पर
अनकही यादों के तस्वीरें सजे है
जिसे देख आँखों मे आँसू की जगह
दील के ज़ख्मो से निकले लहू बहते है
ये सोच कर हम कैद होते है अक्सर
की कुछ सुकून उस तयखाने मे ही मिले
पर वहाँ भी खामोश रहे लब हमारे
जैसे खुद से ही कुछ कहने को हम डरते है
किसको सुवाऊ ए दिल अब बता
ये जो हालात है मेरी इस ज़िन्दगी की
जिससे भी बयां करना चाहा उसने साथ छोड़ा मेरा
ऐसे ही कुछ ज़िन्दगी को हमसे शिकायत होते है
ऐसा भी क्या ज़िन्दगी नैना हमारी
जो चाह कर भी लब तन्हाई मे भी मुस्कुरा न सके
सोचा कुछ बयां करू दर्द-ए-दिल अपना इन सुनी दीवारों से
शायद ये कुछ समझ ले इस तड़प को हमारी..
क्योकि सुना है इन बेज़ुबान दीवारों के कान भी होते है…..!!
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नैना… ✍️✍️
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