क्या ये सच है कि होते हैं
दीवारों के भी कान
क्या सुनते हैं इंसानों की 
बातें भी मकान
क्या समझती हैं इंसानों की
भाषा दीवारें भी
या सिर्फ यूं ही किसी
भ्रम में है इंसान
आजमाया नहीं कभी भी
नहीं पूछा कभी दीवारों से
क्या महसूस करती हैं
वो भी इंसानों के भाव
जब बांट दी जाती हैं
नफरत से दीवारें
पूछा नहीं कभी दीवारों से
क्या दुखता है कभी उनका भी मन
जब सुनता है कोई बातें
दीवारों के उस ओर से
क्या होती हैं वो दीवारें हीं या
होता है कोई इंसान
सुनता है बातों को जब कोई इंसान
बेवजह बदनाम हैं दीवारों के कान
कविता गौतम…✍️
Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *