मत बता हर राज यहा,
यहाँ हर शख्श ग़ैर बन बैठा है,
 कर ले दफ़्न हर बात सीने में,
यहाँ दीवारों ने भी कान लगा रखा है।।
हमदर्द बनकर जो तुझे,
सामने से सांत्वना देते है,
 वही महफ़िल में,
 तेरे दर्द का मज़ाक बनाते है।।
मत यक़ी ईट पत्थर से बने इस घर का,
क्योकि ये भी गैरों का साथ निभाता है,,
 होकर तेरा अपना ये,
 औरों के रंग में रंग जाता है।।
फर्क नही पड़ता यहा, 
किसी को तेरे दर्द से,
अक्सर तेरे घर की दीवारें ही
तेरे ख़िलाफ़ ज़हर उगला करती है।।
 कर खुद को मजबूत इतना की,
तुझे किसी की जरूरत न पड़े,
हर दर्द तू सह ले हँसकर की
दीवारो को भी पता न चले।।
सुमेधा शर्व शुक्ला
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