कानून की नजर में परलोक और पुनर्जन्म का कोई अर्थ नहीं है। यदि रोहन और रंजना को अपना पूर्व जन्म याद भी आ जाता तो भी लक्ष्मणदास और उनके परिवार को सजा नहीं मिल पाती। यदि रोहन और रंजना खुद अपनी लाश का भी पता बता देते तो शायद कानूनन उन्हीं के जानकारों को अपराधी माना जाता। तभी तो माना जाता है कि हर बात के प्रगट होने का सही समय होता है।
जैसे ही लक्ष्मणदास को पता चला कि रामू और वीना फिर से जन्म ले चुके हैं तो पापियों के पाप ने उनकी सोचने समझने की बुद्धि हर ली। ऊपर जो बातें बतायीं हैं, वे उनकी समझ में नहीं आयीं। फिर से रामू और वीना का अंत करने के लिये उन्होंने बङा खतरनाक प्लान बनाया। पहले तो दरोगा को बङी राशि देकर रामचंद्र जी की काल डिटेल निकलबायी। फिर उनके फोनों को अपने एक फर्जी नम्बर पर सुनने की व्यवस्था की। इस तरह वे रोहन और रंजना तक पहुंच गये। और दो गुंडों को पैसा देकर रामू और वीना को फिर से मारने का प्रयास किया। जिस में असफल होकर आज वे पुलिस की गिरफ्त में थे। रंजना और रोहन को मारने की कोशिश के साथ, रामू और वीना की मृत्यु करने, षड्यंत्र करने, पुलिस को गुमराह करने आदि अनेकों आरोपों में उन सभी को आखरी सांस तक जेल में रहने की सजा मिली।
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यमुना नदी के किनारे अठारह वर्ष पूर्व दुनिया छोड़ चुके एक पति और उसकी पत्नी की एक ही चिता जल रही थी जिसे वे दोनों ही अपनी आंखों से देख रहे थे। यह दुर्लभ संयोग लगभग असंभव होता है।
फिर रोहन और रंजना दोनों यमुना नदी के किनारे पहुंचे। इसी जगह का दृश्य रंजना की पेंटिग में था। दोनों उसी तरह बैठ गये जैसे पेंटिग के युवक और युवती हों। आज दोनों को अनेकों बातें याद आ गयीं। उनमें से ज्यादातर का उल्लेख किया जा चुका है। पर कुछ बातों का उल्लेख करना जरूरी है।
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” अब आपको दूसरों की मजदूरी करने की कोई जरूरत नहीं है। फिर क्यों देर रात तक दूसरों के खेतों में पानी देने जाते हों।”
वीना की बात सही थी। पर रामू ने वीना के कान में जो कारण बताया, उसके बाद वीना मना नहीं कर पायी। आज चाचा जी ने बुलाया था। चाचा जी ने बाबू जी को मना लिया है। पर अभी वह सामने आने से शरमा रहे हैं। थोङी देर में वीना को भी जाना था। अगर दोनों साथ साथ निकलते तो अम्मा अनेक सबाल करतीं। तो अच्छा यही है कि अभी रामू चला जाये और फिर वीना उसे बुलाने के बहाने आ जाये।
सब उसी तरह हो रहा था जैसा वीना ने सोचा था। रामू को आने में देर होते देख वह भी चल दी। मन ही मन अनेकों ख्वाव देखती जा रही थी। आखिर आज बाबूजी ने उसे माफ कर दिया। बाबूजी तो वैसे भी बहुत उदार हैं। आज वह बहुत दिनों बाद बाबूजी के गले लगेगी।
चाचा के खेतों से पहले ही उसे शुचिता मिल गयी।
“. भाभी ।कहाॅ हैं बाबू जी।”
.. ” चलो ।अभी ले चलती हूं।”
. फिर दोनों चलते रहे। वीना यह सोच भी नहीं पायी कि शुचिता के मन में पाप है।
चलते चलते दोनों दूर निकल आये। ईख के खेत के पीछे बाबूजी इंतजार कर रहे हैं। वीना बेझिझक घुसती गयी। और जब वह खेत के पार पहुंची तो सच्चाई देखकर चीख उठी।
“. वीना भाग जाओ यहाॅ से। हमारे साथ धोखा हुआ है। तुम्हारी जान खतरे में है।”
रामू के बोलने पर भी वीना भागी नहीं बरन घायल रामू से चिपट गयी। लक्ष्मणदास, सुनीता, सोम्य और शुचिता चारों हसने लगे।
” तुम दोनों हमारी जायदाद के बीच में आ रहे हो। अब तुम ही नहीं बचोंगें। फिर भाई साहब की जायदाद हमारे पास ही आयेगी। “
तभी रामू उठकर लक्ष्मणदास की तरफ झपटा।
” जिस भाई ने तुझसे इतना प्रेम किया, उसी से गद्दारी।”
पर तभी सोम्य ने उसके पीछे से उसके सर पर डंडा मारा। शुचिता ने वीना को डंडों से मारना शुरू किया। दोनों घायल हो गये। फिर एक दूसरे के हाथ पकङकर लेट गये।
लक्ष्मणदास ने दोनों पर भाला मारना शुरू किया। और फिर….
रोहन और रंजना वर्तमान में आ गये। आज रंजना को पेंटिग का रहस्य और रोहन को अपने सपनों का रहस्य पता चला।
” आओ बच्चों। कितनी देर यहाॅ बैठे रहोंगें।”
” आ रही हूं बाबूजी।”
आज रंजना ने रामचंद्र जी को अंकल जी के बजाय बाबूजी बोला तो रामचंद्र की आंखों में आंसू आ गये।
” अम्मा। चलो अब घर चले।”
रोहन की बात सुन ममता चोंकीं फिर चारों रोने लगे।
समाप्त….
दिवा शंकर सारस्वत ‘प्रशांत’