“पापा जी अपनी छड़ी संभाले आगे बढते जा रहे थे! गंतव्य का कोई पता नहीं था.. शरीर शिथिल था और चित्त गतिमान था! विचारों की आंधी का प्रबल वेग..जीजिविषा की अकाट्य उत्कंठा..हर कदम को दिशा प्रदान कर रहे थे! एक तरफ इस नश्वर जगत से आरति( विरक्ति) होने लगी थी… वहीं कहीं एक अगोचर शक्ति अंतस को आलोकित कर रही थी.. आसक्ति और विरक्ति से परे उन्मुक्त हो कर अवसान तट पर एक बहुप्रतीक्षित संकल्प दृष्टि गोचर हो रहा था!” 
इधर अर्जुन ने अपने फोन पर पापा जी का मैसेज पढा और विकल हो गया! 
पापा जी का फोन नहीं लग  रहा था! उसने आस पास ढुंढने की कोशिश की पर पापा जी कहीं नहीं दिखे! 
तीनों भाई  अपने आस पास ढूंढ चुके थे! फिर ख्याल आया कि कहीं पापा जी वृद्धाश्रम में तो नहीं चले गए..?
वहाँ भी सबने ढुँढा! 
फिर अमन ने मैसेज छोडा 
” कहाँ हैं आप?” 
“मैं जहाँ भी हूँ..सुरक्षित हूँ.. !” पापा जी ने उत्तर देकर फोन स्वीच आफ कर दिया! कुछ दिन तक खोजने के बाद बहू-
बेटे भी निश्चिन्त हो गए! उन्हें पता था कि पापा जी एक विख्यात और लोकप्रिय शिक्षक रह चुके हैं.. उन्हें घर से बाहर भी कोई असुविधा नहीं होगी! 
” अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता!” 
किंतु एक अकेला मन दुनिया बदलने का हौसला रखता है..! पापा जी को यह अनुभव हो चुका था कि बच्चों के पास एक चश्मा बनवाने का वक्त नहीं है तो मंदिर निर्माण जैसा वृहत् कार्य उनके सहयोग से कदापि संभव नहीं होगा! उन्होंने अपने अभिन्न मित्रों के जरिए धनराशि इकट्ठा किया और कागजात तैयार करवाया! 
एक आमुलचूल परिवर्तन यह था कि पापा जी अब मंदिर के साथ-साथ वृद्धाश्रम बनवाने का संकल्प भी ले चुके थे! 
यह अकेले संभव नहीं था.. पापा जी की कोशिश रंग लाई और  ट्रस्ट  बन गया! इस कार्य को अंजाम देने के लिए पापा जी बहुत पहले से अपने एक मित्र के संपर्क में थे ! यही डीस्कस करने के लिए पापा जी उन्हें अर्जुन के आवास पर बुलाते थे..! जब बेटे-  बहू का प्रतिकूल रवैया देखा तो घर छोड़ना ही उचित समझा! 
मुस्लिम चाचा के निवेश के अतिरिक्त पापा जी के पास जो भी थन राशि थी वो सब उन्होंने समर्पित कर दिया! एक बारगी ख्याल आया कि माँ का आभूषण तीनों बहुओं में बांट दे..पर उनकी स्वार्थलोलुपता  को याद कर यह विचार भी बदल गया! 
अथक प्रयासों के बाद मंदिर निर्माण कार्य संपन्न हुआ!
अब बहू-बेटे भी मंदिर निर्माण के विषय में जान चुके थे!आगे शिव मंदिर और पीछे वृद्धाश्रम बनवाया गया! देखते ही देखते शहर से अधिकाधिक संख्या में बुजुर्ग ब्यक्ति वहाँ पहुंचने लगे..! इन दिनों पापा जी यथासंभव खुद को कैमरे से दूर ही रखते थे! 
जितने भी बुजुर्ग लोग आते थे.. पापा जी उन सबसे बात कर उनकी समस्या को समझते थे.. और उन्हें  उनके अनुकूल परिवेश भी दिया जाता था! 
आज मंदिर पर एक भब्य आयोजन किया गया था जहाँ शहर के सभी प्रतीष्ठित लोगों का आगमन हुआ था!
पापा जी किसी बुजुर्ग महिला से बात कर रहे थे तभी-
” सर! एक उड़ती हुई खबर आई थी कि आप शिव मंदिर निर्माण कराएंगे फिर.. ये वृद्धाश्रम का ख्याल कहाँ से आ गया?” क्या होता है वृद्धाश्रम.?” 
रिपोर्टर ने पूछा
पापा जी ने माईक संभाला -” 
“बहुत ही अच्छा प्रश्न पूछा है आपने.. जिसका उत्तर देना भी सहज नहीं होता है.. पर आपने पूछा तो मैं उत्तर देता हूँ..!”
“क्या होता है वृद्धाश्रम..? एक बुजुर्ग दंपत्ति चाहता है कि जीवन के उत्तरार्ध में वह अपने पौत्र-पौत्रियों के साथ पुनः अपना बचपन जी ले.. अपने बनाये घरौंदे में खेले.. पर अफसोस कि अब ये सपने अधुरे से लग रहे हैं…आज हमारे देश में शिक्षा पर बहुत जोर दिया जा रहा है.. माता पिता अपने बच्चों को किताबी ज्ञान से परिपूर्ण कर देते हैं.. अनेकानेक मुसीबतों का सामना कर के धनार्जन कर अपने पाल्यों  की ख्वाहिशें पूरी करते हैं..  जिन प्रश्नों का उत्तर बड़े बुजुर्गों के सान्निध्य में प्राप्त हो जाता है, उन प्रश्नों में बच्चे  अकेले उलझ जाते हैं.. उँची उपाधियाँ प्राप्त करने के बाद भी जब बच्चे संस्कार जैसे तत्व से पृथक रहते हैं..ऐसे परिवेश में आवश्यकता होती है वृद्धाश्रम की.. जहाँ कुछ पल के लिए हमारे बुजुर्ग अपनी ब्यथा को एक दूसरे से बाँट सके .. और अपना शेष जीवन भी इसी छत्रछाया में गुजारते हैं  जो कभी उनका था ही नहीं!”और मैं बता दूँ कि मंदिर बनवाने का श्रेय दिवंगत मुस्लिम चाचा को जाता है..  मंदिर बनवाने की धनराशि उन्ही की है..! हमने सिर्फ निर्माण कार्य संपन्न करवाया है! 
इसलिए हमारे मन में यह विचार आया कि हमारे आराध्य शिव के संरक्षण में उनके भक्तों को भी स्थान दिया जाए! 
संभव है कि शिव दर्शन के पश्चात् अपने जीवन में सफल हुए बच्चे कभी इस वृद्धाश्रम में अपने माता-पिता से भी मिल लेंगे! उन्हें अतिरिक्त समय नहीं निकालना पड़ेगा!”
इन्ही शब्दों के साथ अब मैं अपनी वाणी को विराम देता हूँ! 
पापा जी के माईक रखते ही 
पब्लिक के बीच तालियाँ गुंज उठी! पापा जी के इमानदारी के चर्चे सबके जुबान पर थे! तीनों बेटे भी वहाँ उपस्थित थे! सबकी नजरें झुकी थी.. और  चेहरे पर पश्चाताप के चिन्ह दिख रहे थे..! 
वहीं पापा जी के चेहरे पर एक विजय मुस्कान दिख रही थी जिसके वो हकदार थे!” 
(समाप्त)
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