जब जब तुम्हे भूलने की कोशीश करती हूँ,
तब तब न जाने क्यों तेरे शहर याद को करती हूँ,
तेरे शहर की टेढ़ी मेढ़ी गलियों से ,
गुजरते वक्त देखा था तुझे,
चांदनी रात में तेरी आँखों की कशिश देखी थीl
बिल्कुल तुम्हारे ही तरह है तुम्हारा शहर,
तुम्हारी ही तरह बाहर से शांत और अंदर से बैचेन है,
शहर के बीचों बीच वो लाल पलाश का फूल,
बसंत की वो धुली धुली सी हवा,
धुप से भरा वो बादल का टुकड़ा,
सुबह सुबह वो चिड़ियों की चहचहाट,
लोगों की भीड़ से वो सजी दुकानें,
पता नहीं क्यों तेरे साथ साथ
तेरा शहर भी याद आता है। ।
गया तु दूर अपने शहर से,
पूरा शहर ही सन्नाटा हो गया ।
बिल्कुल तुम्हारी ही तरह है तुम्हारा शहर।।