बम का दर्शन – 
राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान क्रांतिकारियों के निंदा में गांधीजी ब्रिटिश सरकार से एक कदम आगे रहते थे। 10 दिसंबर 1929 को क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के स्तंभ वायसराय की गाड़ी को उड़ाने का प्रयास किया जो असफल रहा। गांधी जी ने इस घटना पर एक कटुतापूर्ण लेख  ‘ बम कि पूजा ‘ लिखा , जिसमें उन्होंने वॉइस राय को देश का शुभचिंतक और नव युवकों को आजादी के रास्ते में रोड़ा अटकाने वाले कहा। इसी जवाब में इस प्रेस की ओर से भगवती चरण वोहरा ने “बम का दर्शन “लेख लिखा ,जिसका शीर्षक ‘ हिंदुस्तान प्रजातंत्र समाजवादी सभा का घोषणा पत्र’  रखा । भगत सिंह ने जेल में इसे अंतिम रूप दिया। 26 जनवरी 1930 को इसे देशभर में बांटा गया।
हाल ही की घटनाएं विशेष रूप से 23 दिसंबर 1929 को वायसराय की स्पेशल ट्रेन उड़ाने का जो प्रयत्न किया गया था उसकी निंदा करते हुए कांग्रेस द्वारा पारित किया गया प्रस्ताव तथा यंग इंडिया में गांधी जी द्वारा लिखे गए लेखों से स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने गांधी जी से सांठ गांठ कर भारतीय क्रांतिकारियों के विरुद्ध घोर आंदोलन प्रारंभ कर दिया है। जनता के बीच भाषाओं तथा पत्रों के माध्यम से क्रांतिकारियों के विरुद्ध  बराबर प्रचार किया जाता रहा है।या तो यह जानबूझकर किया गया या फिर केवल अज्ञान के कारण उनके विषय में गलत  प्रचार होता रहा है और उन्हें गलत समझा जाता रहा। परंतु क्रांतिकारी अपने सिद्धांतों तथा कार्यों की ऐसी आलोचना से नहीं घबराते हैं। बलिक वह ऐसी आलोचना का स्वागत करते हैं क्योंकि वह इसे इस बात का स्वर्णावसर मानते हैं कि ऐसा करने से उन्हें उन लोगों को क्रांतिकारियों के मूलभूत सिद्धांतों तथा उच्च आदर्शों को जो उनकी प्रेरणा तथा शक्ति के अनवरत स्त्रोत हैं, समझाने का अवसर मिलता है आशा की जाती है कि इस लेख द्वारा आम जनता को यह जानने का अवसर मिलेगा की क्रांतिकारी क्या है ,उनके विरुद्ध किए गए भर्मात्मक प्रचार से उत्पन्न होने वाली गलतफहमी से उन्हें बचाया जा सकेगा।
पहले हम हिंसा और अहिंसा के प्रश्न पर ही विचार करें। हमारे विचार से इन शब्दों का प्रयोग ही गलत किया गया है और ऐसा करना ही दोनों दलों के साथ अन्याय करना है क्योंकि इन शब्दों से दोनों ही दलों के सिद्धांतों का स्पष्ट बोध नहीं हो पाता। हिंसा का अर्थ है कि अन्याय के लिए किया गया बल प्रयोग परंतु क्रांतिकारियों का तो यह उद्देश्य नहीं है दूसरी ओर अहिंसा का जो आम अर्थ समझा जाता है वह है आत्मिक शक्ति का सिद्धांत । उसका उपयोग व्यक्तिगत तथा राष्ट्रीय अधिकारों को प्राप्त करने के लिए किया जाता है। अपने आप को कष्ट देकर आशा की जाती है कि इस प्रकार अंत में अपने विरोधी का हृदय परिवर्तन संभव हो सकेगा।
एक क्रांतिकारी जब कुछ बातों को अपना अधिकार मान लेता है तो वह उनकी मांग करता है ,अपनी उस मांग के पक्ष में दलीलें देता है, समस्त आत्मिक शक्ति के द्वारा उन्हें प्राप्त करने की इच्छा करता है ,उसकी प्राप्ति के लिए अत्यधिक कष्ट सहन करता है, इसके लिए वह बड़े से बड़ा त्याग करने के लिए प्रस्तुत रहता है और उसके समर्थन में वह अपना समस्त शारीरिक बल प्रयोग भी करता है। इसके इन प्रयत्नों को आप चाहे जिस नाम से पुकारे परंतु आप इन्हें हिंसा के नाम से संबोधित नहीं कर सकते, क्योंकि ऐसा करना कोष में दिए इस शब्द के अर्थ के साथ अन्याय होगा। सत्याग्रह का अर्थ है “सत्य के लिए आग्रह “। उसकी स्वीकृति के लिए केवल आत्मिक शक्ति के प्रयोग का ही आग्रह क्यों ? इसके साथ-साथ शारीरिक बल प्रयोग भी  क्यों नहीं किया जाए ? क्रांतिकारी स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अपना शारीरिक एवं नैतिक शक्ति दोनों के प्रयोग में विश्वास करता है ,परंतु नैतिक शक्ति का प्रयोग करने वाले शारीरिक बल प्रयोग को निषिद्ध मानते हैं। इसलिए अब यह सवाल नहीं है कि आप हिंसा चाहते हैं या अहिंसा, बलिक प्रश्न तो यह है कि आप अपने उद्देश्य प्राप्ति के लिए शारीरिक बल सहित नैतिक बल का प्रयोग करना चाहते हैं या केवल आत्मिक शक्ति का?
क्रांतिकारियों का विश्वास है कि देश को क्रांति से ही स्वतंत्रता मिलेगी। वह जिस क्रांति के लिए प्रयत्नशील हैं और जिस क्रांति का रूप उनके सामने स्पष्ट है उसका अर्थ केवल यह नहीं है कि विदेशी शासकों तथा उनके पिटओं से क्रांतिकारियों का केवल सहस्त्र संघर्ष हो बल्कि सहस्त्र संघर्ष के साथ-साथ नवीन सामाजिक व्यवस्था के द्वार देश के लिए मुक्त हो जाएं। क्रांति पूंजीवाद वर्ग बाद तथा कुछ लोगों को ही विशेषाधिकार दिलाने वाली प्रणाली का अंत कर देगी। यह राष्ट्र को अपने पैरों पर खड़ा करेगी उससे नवीन राष्ट्र और नए समाज का जन्म होगा। क्रांति से सबसे बड़ी बात तो यह होगी कि वह मजदूर व किसानों का राज कायम कर उन सब सामाजिक अवांछित तत्वों को समाप्त कर देगी ,जो देश की राजनीतिक शक्ति को हथियाए बैठे हैं।
आज की तरुण पीढ़ी को मानसिक गुलामी तथा धार्मिक रूढ़िवादी बंधन जकड़े हैं और उससे छुटकारा पाने के लिए तरुण समाज की जो बेचैनी है, क्रांतिकारी उसी में प्रगतिशील ताके अंकुर देख रहा है। नवयुवक जैसे-जैसे मनोवैज्ञानिक आत्मसात करता जाएगा वैसे-वैसे राष्ट्र की गुलामी का चित्र उसके सामने स्पष्ट होता जाएगा तथा उसकी देश को स्वतंत्र करने की इच्छा प्रबल होती जाएगी। और उसका यह कर्म तब तक चलता रहेगा जब तक कि युवक न्याय क्रोध और क्षोभ से ओतप्रोत हो अन्याय करने वालों की हत्या न  प्रारंभ कर देगा । इस प्रकार देश में आतंकवाद का जन्म होता है। आतंकवाद संपूर्ण क्रांति नहीं और क्रांति भी आतंकवाद के बिना पूर्ण नहीं। यह तो क्रांति का एक आवश्यक अंग है। यह सिद्धांत का समर्थन इतिहास के किसी भी क्रांति का विश्लेषण कर जाना जा सकता है। आतंकवाद आततायी के मन में भय पैदा कर पीड़ित जनता में प्रतिशोध की भावना जागृत कर उसे शक्ति प्रदान करता है। अस्थिर भावना वाले लोगों को इससे हिम्मत बनती है तथा उनमें आत्मविश्वास पैदा होता है। इससे दुनिया के सामने क्रांति के उद्देश्य क्या वास्तविक रूप प्रकट हो जाता है क्योंकि यह किसी राष्ट्र की स्वतंत्रता के उत्कृष्ट महत्वाकांक्षा का विश्वास दिलाने वाले प्रमाण है, जैसे दूसरे देशों में होता आया है वैसे ही भारत में आतंकवाद क्रांति का रूप धारण कर लेगा और अंत में क्रांति से ही देश को सामाजिक राजनीतिक तथा आर्थिक स्वतंत्रता मिलेगी।
क्रमशः
गौरी तिवारी 
भागलपुर बिहार
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बम का दर्शन – 
राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान क्रांतिकारियों के निंदा में गांधीजी ब्रिटिश सरकार से एक कदम आगे रहते थे। 10 दिसंबर 1929 को क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के स्तंभ वायसराय की गाड़ी को उड़ाने का प्रयास किया जो असफल रहा। गांधी जी ने इस घटना पर एक कटुतापूर्ण लेख  ‘ बम कि पूजा ‘ लिखा , जिसमें उन्होंने वॉइस राय को देश का शुभचिंतक और नव युवकों को आजादी के रास्ते में रोड़ा अटकाने वाले कहा। इसी जवाब में इस प्रेस की ओर से भगवती चरण वोहरा ने “बम का दर्शन “लेख लिखा ,जिसका शीर्षक ‘ हिंदुस्तान प्रजातंत्र समाजवादी सभा का घोषणा पत्र’  रखा । भगत सिंह ने जेल में इसे अंतिम रूप दिया। 26 जनवरी 1930 को इसे देशभर में बांटा गया।
हाल ही की घटनाएं विशेष रूप से 23 दिसंबर 1929 को वायसराय की स्पेशल ट्रेन उड़ाने का जो प्रयत्न किया गया था उसकी निंदा करते हुए कांग्रेस द्वारा पारित किया गया प्रस्ताव तथा यंग इंडिया में गांधी जी द्वारा लिखे गए लेखों से स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने गांधी जी से सांठ गांठ कर भारतीय क्रांतिकारियों के विरुद्ध घोर आंदोलन प्रारंभ कर दिया है। जनता के बीच भाषाओं तथा पत्रों के माध्यम से क्रांतिकारियों के विरुद्ध  बराबर प्रचार किया जाता रहा है।या तो यह जानबूझकर किया गया या फिर केवल अज्ञान के कारण उनके विषय में गलत  प्रचार होता रहा है और उन्हें गलत समझा जाता रहा। परंतु क्रांतिकारी अपने सिद्धांतों तथा कार्यों की ऐसी आलोचना से नहीं घबराते हैं। बलिक वह ऐसी आलोचना का स्वागत करते हैं क्योंकि वह इसे इस बात का स्वर्णावसर मानते हैं कि ऐसा करने से उन्हें उन लोगों को क्रांतिकारियों के मूलभूत सिद्धांतों तथा उच्च आदर्शों को जो उनकी प्रेरणा तथा शक्ति के अनवरत स्त्रोत हैं, समझाने का अवसर मिलता है आशा की जाती है कि इस लेख द्वारा आम जनता को यह जानने का अवसर मिलेगा की क्रांतिकारी क्या है ,उनके विरुद्ध किए गए भर्मात्मक प्रचार से उत्पन्न होने वाली गलतफहमी से उन्हें बचाया जा सकेगा।
पहले हम हिंसा और अहिंसा के प्रश्न पर ही विचार करें। हमारे विचार से इन शब्दों का प्रयोग ही गलत किया गया है और ऐसा करना ही दोनों दलों के साथ अन्याय करना है क्योंकि इन शब्दों से दोनों ही दलों के सिद्धांतों का स्पष्ट बोध नहीं हो पाता। हिंसा का अर्थ है कि अन्याय के लिए किया गया बल प्रयोग परंतु क्रांतिकारियों का तो यह उद्देश्य नहीं है दूसरी ओर अहिंसा का जो आम अर्थ समझा जाता है वह है आत्मिक शक्ति का सिद्धांत । उसका उपयोग व्यक्तिगत तथा राष्ट्रीय अधिकारों को प्राप्त करने के लिए किया जाता है। अपने आप को कष्ट देकर आशा की जाती है कि इस प्रकार अंत में अपने विरोधी का हृदय परिवर्तन संभव हो सकेगा।
एक क्रांतिकारी जब कुछ बातों को अपना अधिकार मान लेता है तो वह उनकी मांग करता है ,अपनी उस मांग के पक्ष में दलीलें देता है, समस्त आत्मिक शक्ति के द्वारा उन्हें प्राप्त करने की इच्छा करता है ,उसकी प्राप्ति के लिए अत्यधिक कष्ट सहन करता है, इसके लिए वह बड़े से बड़ा त्याग करने के लिए प्रस्तुत रहता है और उसके समर्थन में वह अपना समस्त शारीरिक बल प्रयोग भी करता है। इसके इन प्रयत्नों को आप चाहे जिस नाम से पुकारे परंतु आप इन्हें हिंसा के नाम से संबोधित नहीं कर सकते, क्योंकि ऐसा करना कोष में दिए इस शब्द के अर्थ के साथ अन्याय होगा। सत्याग्रह का अर्थ है “सत्य के लिए आग्रह “। उसकी स्वीकृति के लिए केवल आत्मिक शक्ति के प्रयोग का ही आग्रह क्यों ? इसके साथ-साथ शारीरिक बल प्रयोग भी  क्यों नहीं किया जाए ? क्रांतिकारी स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अपना शारीरिक एवं नैतिक शक्ति दोनों के प्रयोग में विश्वास करता है ,परंतु नैतिक शक्ति का प्रयोग करने वाले शारीरिक बल प्रयोग को निषिद्ध मानते हैं। इसलिए अब यह सवाल नहीं है कि आप हिंसा चाहते हैं या अहिंसा, बलिक प्रश्न तो यह है कि आप अपने उद्देश्य प्राप्ति के लिए शारीरिक बल सहित नैतिक बल का प्रयोग करना चाहते हैं या केवल आत्मिक शक्ति का?
क्रांतिकारियों का विश्वास है कि देश को क्रांति से ही स्वतंत्रता मिलेगी। वह जिस क्रांति के लिए प्रयत्नशील हैं और जिस क्रांति का रूप उनके सामने स्पष्ट है उसका अर्थ केवल यह नहीं है कि विदेशी शासकों तथा उनके पिटओं से क्रांतिकारियों का केवल सहस्त्र संघर्ष हो बल्कि सहस्त्र संघर्ष के साथ-साथ नवीन सामाजिक व्यवस्था के द्वार देश के लिए मुक्त हो जाएं। क्रांति पूंजीवाद वर्ग बाद तथा कुछ लोगों को ही विशेषाधिकार दिलाने वाली प्रणाली का अंत कर देगी। यह राष्ट्र को अपने पैरों पर खड़ा करेगी उससे नवीन राष्ट्र और नए समाज का जन्म होगा। क्रांति से सबसे बड़ी बात तो यह होगी कि वह मजदूर व किसानों का राज कायम कर उन सब सामाजिक अवांछित तत्वों को समाप्त कर देगी ,जो देश की राजनीतिक शक्ति को हथियाए बैठे हैं।
आज की तरुण पीढ़ी को मानसिक गुलामी तथा धार्मिक रूढ़िवादी बंधन जकड़े हैं और उससे छुटकारा पाने के लिए तरुण समाज की जो बेचैनी है, क्रांतिकारी उसी में प्रगतिशील ताके अंकुर देख रहा है। नवयुवक जैसे-जैसे मनोवैज्ञानिक आत्मसात करता जाएगा वैसे-वैसे राष्ट्र की गुलामी का चित्र उसके सामने स्पष्ट होता जाएगा तथा उसकी देश को स्वतंत्र करने की इच्छा प्रबल होती जाएगी। और उसका यह कर्म तब तक चलता रहेगा जब तक कि युवक न्याय क्रोध और क्षोभ से ओतप्रोत हो अन्याय करने वालों की हत्या न  प्रारंभ कर देगा । इस प्रकार देश में आतंकवाद का जन्म होता है। आतंकवाद संपूर्ण क्रांति नहीं और क्रांति भी आतंकवाद के बिना पूर्ण नहीं। यह तो क्रांति का एक आवश्यक अंग है। यह सिद्धांत का समर्थन इतिहास के किसी भी क्रांति का विश्लेषण कर जाना जा सकता है। आतंकवाद आततायी के मन में भय पैदा कर पीड़ित जनता में प्रतिशोध की भावना जागृत कर उसे शक्ति प्रदान करता है। अस्थिर भावना वाले लोगों को इससे हिम्मत बनती है तथा उनमें आत्मविश्वास पैदा होता है। इससे दुनिया के सामने क्रांति के उद्देश्य क्या वास्तविक रूप प्रकट हो जाता है क्योंकि यह किसी राष्ट्र की स्वतंत्रता के उत्कृष्ट महत्वाकांक्षा का विश्वास दिलाने वाले प्रमाण है, जैसे दूसरे देशों में होता आया है वैसे ही भारत में आतंकवाद क्रांति का रूप धारण कर लेगा और अंत में क्रांति से ही देश को सामाजिक राजनीतिक तथा आर्थिक स्वतंत्रता मिलेगी।
क्रमशः
गौरी तिवारी 
भागलपुर बिहार
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