बदलने लगा है, अब तुम्हारा शहर,
बिन मतलब पूछता नहीं कोई यहाँ,
बरस रहा है यहां स्वार्थ का क़हर,
बिन मक़सद के सोचता कोई कहाँ।
इच्छाओं का बाज़ार रोज़ बढ़ रहा,
इंसान का पारा दिनोंदिन चढ़ रहा,
जाने कैसे अब सुख का दौर आएगा,
स्वार्थ के पाठ हर कोई पढ़ रहा।
पूजा पीहू