बम का दर्शन (सेकेंड पार्ट )
तो यह है कि क्रांतिकारी के सिद्धांत जिनमें वह विश्वास करता है और जिन्हें देश के लिए प्राप्त करना चाहता है। इस तथ्य की प्राप्ति के लिए वह गुप्त तथा खुलेआम दोनों ही तरीकों से प्रयत्न कर रहा है।इस प्रकार एक शताब्दी से संसार में जनता तथा शासक वर्ग में जो संघर्ष चल रहा है वही अनुभव उनके लक्ष्य पर पहुंचने का मार्ग दर्शन है। क्रांतिकारी जिन तरीकों में विश्वास करता है वह कभी असफल नहीं हुए।
इस बीच कांग्रेस क्या कर रही थी?उसने अपना ध्येय स्वराज्य से बदलकर पूर्ण स्वतंत्रता घोषित किया।इस घोषणा से कोई भी व्यक्ति यही निष्कर्ष निकालेगा कि कांग्रेस ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध युद्ध की घोषणा ना कर क्रांतिकारियों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी है। इस संबंध में कांग्रेस का पहला वार था उसका वह प्रस्ताव जिसमें 23 दिसंबर 1929 को वायसराय की स्पेशल ट्रेन उड़ाने के प्रयत्न की निंदा की गई। और प्रस्ताव का मसौदा गांधी जी ने स्वयं तैयार किया था और उसे पारित करने के लिए गांधीजी ने अपनी सारी शक्ति लगा दी। परिणाम यह हुआ कि 1913 की सदस्य संख्या में वह केवल 21 अधिक मतों से पारित हो सका। क्या इस अत्यल्प बहुमत में भी राजनीतिक ईमानदारी थी? इस संबंध में हम सरला देवी चौधरानी का मत ही यहां उद्त करें। वह तो जीवन भर कांग्रेस के भक्त रहे हैं। इस संबंध में प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा है मैंने महात्मा गांधी के अनुयायियों के साथ इस विषय में जो बातचीत की उससे मालूम हुआ है कि वह इस संबंध में स्वतंत्र विचार महात्मा जी के प्रति व्यक्तिगत निष्ठा के कारण प्रकट न कर सके तथा इस प्रस्ताव के विरुद्ध मत देने में असमर्थ रहे जिसके प्रणेता महात्मा जी थे। जहां तक गांधीजी की दलील का प्रश्न है उस पर हम बाद में विचार करेंगे। उन्होंने जो दलीले दी हैं वह कुछ कम या अधिक इस संबंध में कांग्रेस में दिए गए भाषण का ही विस्तृत रूप है।
इस दुखद प्रस्ताव के विषय में एक बात मार्क की है जिसे हम अनदेखा नहीं कर सकते ,वह यह कि यह सर्वविदित है कि कांग्रेस अहिंसा का सिद्धांत मानती है और पिछले 10 वर्षों से वह इसके समर्थन में प्रचार करती रही है। यह सब होने पर भी प्रस्ताव के समर्थन में भाषणों में गाली गलौज की गई। उन्होंने क्रांतिकारियों को बुजदिल कहा और उनके कार्यों को घृणित। उनमें से एक वक्ता ने धमकी देते हुए यहां तक कह डाला कि यदि वे (सदस्य) गांधी जी का नेतृत्व चाहते हैं तो उन्हें इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित करना चाहिए। इतना सब कुछ किए जाने पर भी यह प्रस्ताव बहुत थोड़े मतों से ही पारित हो सका। इससे यह बात निशंक प्रमाणित हो जाती है कि देश की जनता पर्याप्त संख्या में क्रांतिकारियों का समर्थन कर रही है। इस तरह से इसके लिए गांधी जी हमारे बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने इस प्रश्न पर विवाद खड़ा किया और इस प्रकार संसार को दिखा दिया कि कांग्रेस जो हिंसा का गढ़ माना जाता है ,वह संपूर्ण नहीं तो एक हद तक तो कांग्रेस से अधिक क्रांतिकारियों के साथ हैं।
इस विषय में गांधी जी ने जो विजय प्राप्त की वह एक प्रकार की हार ही के बराबर थी ।और अब वे ” दि कल्ट ऑफ दी बम ” लेख द्वारा क्रांतिकारियों पर दूसरा हमला कर बैठे हैं। इस संबंध में आगे कुछ कहने से पूर्व इस लेख पर हम अच्छी तरह विचार करेंगे। इस लेख में उन्होंने तीन बातों का उल्लेख किया है। उनका विश्वास, उनके विचार ,और उनका मत। हम उनके विश्वास के संबंध में विश्लेषण नहीं करेंगे क्योंकि विश्वास में तर्क के लिए स्थान नहीं है। गांधीजी जिसे हिंसा कहते हैं और जिसके विरूद्ध उन्होंने जो तर्कसंगत विचार प्रकट किए हैं, हम उनका सिलसिलेवार विश्लेषण करें।
गांधीजी सोचते हैं कि उनकी यह धारणा सही है कि अधिकतर भारतीय जनता को हिंसा की भावना छू तक नहीं गई है और अहिंसा उनका राजनीतिक शास्त्र बन गया है। हाल ही में उन्होंने देश का जो भ्रमण किया है उस अनुभव के आधार पर उनकी या धारणा बनी है ,परंतु उन्हें अपनी इस यात्रा के इस अनुभव से इस भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए। यह बात सही है कि (कांग्रेस )नेता अपने दौरे वहीं तक सीमित रखता है जहां तक डाक गाड़ी उसे आराम से पहुंचा सकती है ,जबकि गांधीजी ने अपनी यात्रा का दायरा वहां तक बढ़ा दिया है जहां तक मोटर कार द्वारा वह जा सकें। इस यात्रा में वह धनी व्यक्तियों के ही निवास स्थलों पर रुके। इस यात्रा का अधिकतर समय उनके भक्तों द्वारा आयोजित गोष्ठियों में की गई उनकी प्रशंसा सभा में यदा-कदा अशिक्षित जनता को दिए जाने वाले दर्शनों में बीता ,जिसके विषय में उनका दावा है कि वह उन्हें अच्छी तरह समझते हैं, परंतु यही बात इस दल के विरुद्ध है कि वह आम जनता की विचारधारा को जानते हैं।
कोई व्यक्ति जनसाधारण की विचारधारा को केवल मंचों से दर्शन और उपदेश देकर नहीं समझ सकता। वह तो केवल इतना ही दावा कर सकता है कि उसने विभिन्न विषयों पर अपने विचार जनता के सामने रखें। क्या गांधी जी ने इन वर्षों में आम जनता के सामाजिक जीवन में कभी प्रवेश करने का प्रयत्न किया?क्या कभी उन्होंने किसी संध्या को गांव की किसी चौपाल के अलाव के पास बैठकर किसी किसान के विचार जानने का प्रयत्न किया? क्या किसी कारखाने के मजदूर के साथ एक भी शाम गुजार कर उसके विचार समझने की कोशिश की है?, पर हमने यह किया है इसलिए हम दावा करते हैं कि हम आम जनता को जानते हैं। हम गांधी जी को विश्वास दिलाते हैं कि साधारण भारतीय साधारण मानव के सामने ही अहिंसा तथा अपने शत्रु से प्रेम करने की आध्यात्मिक भावनाओं को बहुत कम समझता है।संसार का तो यही नियम है तुम्हारा एक मित्र तुम उस सेक्स नहीं करते हो कभी-कभी तो इतना अधिक कि तुम उसके लिए अपने प्राण भी दे देते हो। तुम्हारा शत्रु है तुम उससे किसी भी प्रकार का संबंध नहीं रखते हो। क्रांतिकारियों का यह सिद्धांत नितांत सत्य ,सरल और सीधा है और यह ध्रुव सत्य आदम और हौवा के समय से चला आ रहा है तथा इसे समझने में कभी किसी को कठिनाई नहीं हुई। हम यह बात स्वयं के अनुभव के आधार पर कह रहे हैं। वह दिन दूर नहीं जब लोग क्रांतिकारी विचारधारा को सक्रिय रूप देने के लिए हजारों की संख्या में जमा होंगे।
क्रमशः
गौरी तिवारी
भागलपुर बिहार