कोरोना कोरोना का शोर मचा सबकी गृह बंदी हो गई,
जिंदगी के अरमानों की बोलती बंद हो गई।
हर कोई कोरोना के डर से मास्क लगा कर बैठा है,
बिना मास्क निकले जो बाहर उलटे पैर वो लौटा है।
ना जाने करोना के कारण बच्चों की पढ़ाई कब शुरू होगी,
जिंदगी की रेलगाड़ी कब पटरी
पर आएगी?
कोरोना का डर कब तक लोगों के दिलों में रहेगा,
कोरोना का ये शोर कब तक यूं ही मचता रहेगा?
नहीं पता कब खुली हवा में स्वतन्त्र सांस ले पायेंगे,
मुँह पर लगे मास्क से कब छुटकारा पायेंगे?
सावधानी हटी दुर्घटना घटी के जैसे हुआ है,
मास्क हटा कर देखो, कोरोना आया हुआ है।
अब तो मास्क और व्यक्ति का संबंध तो ऐसे,
लगे चोली और दामन का संग हो जैसे।
सुषमा श्रीवास्तव
मौलिक रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित