छोटी-छोटी आशाएं हैं इस जीवन की जान
इनके साथ ही होता है जीना आसान
घटाटोप अंधियारे से एक नन्हा दीपक लड़ता
जब तक आशा की बाती से टिममटिमकर वह जलता
घनी रात भी पांव पसारे जब खुद पर इतराती
सूरज की एक नई किरण से भोर सुहानी आती
शैशव से वृद्धावस्था तक कई साल है बीते
नई नई आशाएं पाले हम सपनों में जीते
जब तक आशाएं होती हैं हम भी तब तक जीते
बिन उम्मीदों के सबके दिल हो जाते हैं रीते
आशाएं ही तो हम सबको नई उमंगे देती
कारण भी देती जीने का और निवारण देती
छोटी-छोटी आशाओं से आसमान टिक जाता है
इन पर जीने वालों का ही इतिहास लिख जाता है
प्रीति मनीष दुबे
मण्डला मप्र