फूलों सी मासूम कहानी
हुई बसंत की अगवानी।
बासन्ती अब हुई बहारें
ऋतुओं को चढ़ गई जवानी।।
चहक रही गौरैया घर में
कलियां खिलने लगीं
मीठी मीठी धूप बदल कर
बदन को चुभने लगी।
आंगन में अब डाल खटोला
किस्से कहतीं दादी, नानी।
हुई बसंत की अगवानी।।
तारे चमके अब रातों में
कोहरे ने ले ली है बिदाई,
पीली-पीली सरसों से भी
भीनी-भीनी खुशबू आई।
रंग बिरंगीं तितली उड़तीं
भौरें करते मनमानी।
हुई बसन्त की अगवानी।।
रंग-बिरंगे फूल खिले हैं
कितने प्यारे बागों में,
मदहोशी सी बिखरी है
इस मौसम के रागों में।
महके महके बाग बगीचे
कोयल फिरती बौरानी।
हुई बसंत की अगवानी।।
ये ऋतु कोई आम नहीं
ये होती है बहुत सुहानी,
सब ऋतुओं में ये होती है
जैसे हो परियों की रानी।
सोने के परिधानों में
लगती है जैसे महारानी
हुई बसंत की अगवानी।।
डॉ0 अजीत खरे
प्राचार्य
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