स्वर कोकिला की देह अब ,
सो गई सदा के लिए,
जीवित रहेंगे स्वर परंतु,
अनंत काल  बिन विदा लिए,
एक थी लता ,एक ही रहेंगी,
कोई और न जगह भर पायेगा,
कोयल के उस गान को,
कोई और न दोहराएगा,
गीत थे अनगिनत,
जो उस कंठ ने सुनाए थे,
देशभक्ति से भरे ,
कुछ लफ्ज़ भी सुनाये थे,
रत्न थीं वो भारत का,
जो लौटकर  न आएंगी,
पर फिर भी ये धरा ,
राग तेरे गुनगुनाएगी,
माना की आज वो,
लीन हुई,चिरनिंद्रा में,
किंतु अब भी ये प्रकृति,
गीत तेरे गायेगी,
गीत तेरे गायेगी।।
स्वर कोकिला को नमन।
आरती आचार्य
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