स्वर कोकिला, स्वर साध्वी, सहराब्दी की आवाज़
स्वर साम्राज्ञी संग हुआ सदा,हिंद में सुरों का आगाज़
स्वर सारथी बन किया, आजीवन हर दिल पर राज
मधुर कंठ से पाया  जिन्होंने,भारत कोकिला का ताज
सुरों की मलिका के गीतों से, मंत्र मुक्त होता सारा संसार
घर-घर पहुँचते उनके गीत,खुले सबके मन के द्वार
बांधा जुदा दिलों को, जोड़ा सबको जैसे परिवार
भारत रत्न बन पाया जिन्होंने,सकल जन का प्रेम अपार
 सुर साधिका समस्त धरा पर, मिले ना उनके जैसी कोई
 देख पार्थिव शरीर जिनका, आज सारी दुनिया है रोई
 उनकी कमी पूरी कर सके,ना जग में कभी कोई
आज अंतिम विदाई ले,जो अनंत में कहीं खोई
सुनीता कुमारी अहरी
 स्वरचित एवं मौलिक
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